केरल के सभी राजनीतिक दलों ने उच्चतम न्यायालय के बृहस्पतिवार के उस फैसले का स्वागत किया जिसमें उसने सभी आयु वर्ग की महिलाओं को भगवान अयप्पा के मंदिर में जाने की अनुमति देने वाले अपने पूर्व के आदेश को नए सिरे से विचार के लिए सात सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपा है। विपक्ष के नेता रमेश चेन्निथला ने उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए वाम दल की अगुवाई वाली राज्य सरकार से रजस्वला आयु वर्ग की स्त्रियों को सुरक्षा दायरे में भगवान अयप्पा के मंदिर में ले जाकर ‘किसी प्रकार का मुद्दा’ खड़ा नहीं करने को कहा है।
चेन्निथला ने कहा, ‘‘सिर्फ इसलिए कि 28 सिबंतर के फैसले पर कोई रोक नहीं लगी है, इसलिए एलडीएफ सरकार को महिलाओं को सुरक्षा प्रदान कर सबरीमाला मंदिर जाने की अनुमति देकर कोई मुद्दा खड़ा नहीं करना चाहिए। राज्य सरकार को रजस्वला आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर ले जाने का अपना पूर्व का एजेंडा फिर से नहीं चलाना चाहिए।’’ उच्चतम न्यायालय ने आज के अपने फैसले में कहा कि धार्मिक स्थलों पर महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध केवल सबरीमाला तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अन्य धर्मों में भी ऐसा है। इसके साथ ही न्यायालय ने सभी पुनर्विचार याचिकाओं को सात न्यायाधीशों वाली पीठ के पास भेज दिया।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने स्वयं अपनी ओर से, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा की ओर से फैसला पढ़ता हुए कहा कि वृहद पीठ सबरीमाला मंदिर, मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश तथा दाऊदी बोहरा समाज में स्त्रियों के खतना सहित विभिन्न धार्मिक मुद्दों पर फैसला करेगी। उच्चतम न्यायालय के इस फैसले पर राज्य सरकार ने अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने कहा कि नए फैसले से श्रद्धालुओं की आस्था की रक्षा करने में मदद मिलेगी। इस मामले में एक याचिकाकर्ता एवं पंडलाम राजघराने के सदस्य शशिकुमार वर्मा ने कहा कि वह उच्चतम न्यायालय के फैसले से बेहद प्रसन्न हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘अदालत ने श्रद्धालुओं की भावनाओं को समझा और पुनर्विचार याचिकाओं को सात न्यायाधीशों वाली पीठ के पास भेज दिया। इसका मतलब है कि पहले के फैसले में कोई त्रुटि थी। हमें इस बात का संतोष है और खुशी है कि उच्चतम न्यायालय ने अपने पहले के फैसले पर नए सिरे से विचार का निर्णय लिया है। यह भगवान अयप्पा की कृपा है।’’ भाजपा के वरिष्ठ नेता कुम्मानम राजशेखरन ने कहा कि पुनर्विचार याचिका को सात न्यायाधीशों वाली पीठ के पास भेजा जाना इस बात की ओर इशारा करता है कि पहले के फैसले में कुछ प्रत्यक्ष त्रुटि थी।
राजशेखरन ने कहा,‘‘सरकार को संयम बरतना चाहिए और वृहद पीठ के फैसले का इंतजार करना चाहिए। अगर रजस्वला आयु वर्ग की स्त्रियां पूजा अर्चना का प्रयास करती हैं तो सरकार को उन्हें रोकने की कोशिश करनी चाहिए।’’ सबरीमला मंदिर के मुख्य पुजारी कंडारारू राजीवारू ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि वह पिछले साल सितंबर के उच्चतम न्यायालय के फैसले को सात न्यायाधीशों वाली पीठ के पास भेजने का स्वागत करते हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता राहुल ईश्वरन ने कहा कि ‘‘यह आस्था के पक्ष में फैसला है।’’ आस्था के मामले में किसी को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल 28 सितंबर को सभी आयु वर्ग की महिलाओं को भगवान अयप्पा के मंदिर जाने और पूजा करने की अनुमति दी थी। न्यायालय के इस फैसले के बाद राज्य सरकार ने फैसले पर अमल करने की कोशिश की थी जिसके बाद राज्य में हिंसक प्रदर्शक हुए थे।