तिब्बत के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने रविवार को महाराष्ट्र के औरंगाबाद में कहा कि बुद्ध और बौद्ध धर्म को समझने के लिए केवल आस्था नहीं बल्कि ज्ञान भी जरूरी है। दलाई लामा ने वैश्विक बौद्ध समागम को संबोधित करते हुए कहा, “बौद्ध धर्म का जन्म और विकास भारत में ही हुआ था। बाबासाहेब आंबेडकर ने 20वीं सदी में भारत में बौद्ध धर्म के पुनरुत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।”
दलाई लामा ने कहा, “आचार्य शांतिरक्षित को तिब्बत आमंत्रित किया गया था जिसके बाद वहां साहित्य के अध्ययन, चर्चा और रचना का आंदोलन शुरू हुआ। तिब्बत ने इस अनमोल साहित्य को अब तक अक्षुण्ण रखने का प्रयास किया है।”
उन्होंने कहा, “मैं हमेशा बौद्धों को 21वीं सदी का बौद्ध होने के लिए कहता हूं। इसका मतलब है मैं आपको सब कुछ का अध्ययन करने के लिए कहता हूं। दो तरह के अनुयायी होते हैं। एक आस्था वाले और दूसरा प्रतिभा वाले। यदि आप बौद्ध धर्म को केवल आस्था के चलते पालन करते हैं, बौद्ध धर्म लंबे समय नहीं चलेगा। यद्यपि प्रतिभा के साथ यह अवश्य ही लंबा चलेगा। बौद्ध धर्म का पालन ज्ञान के आधार पर करने की जरूरत है।’’
उन्होंने कहा कि बौद्ध धर्म एक दवा की तरह है। उन्होंने कहा, “एक दवा हर तरह की बीमारी के लिए उपयुक्त नहीं हो सकती।” दलाई लामा ने कहा, “प्रत्येक व्यक्ति को अपना धर्म चयन करना चाहिए और उसका सहिष्णुता के साथ पालन करना चाहिए। भारत सहिष्णुता का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है और कई धर्मों का शांति के साथ सह-अस्तित्व है।”