राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) के प्रभाव पर तमिलनाडु सरकार द्वारा समिति के गठन पर मद्रास हाई कोर्ट ने मंगलवार को राज्य सरकार से कई सवाल किए। हाई कोर्ट ने पूछा कि क्या सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की अनुमति ली है और कहीं इससे कोर्ट के आदेश का उल्लंघन तो नहीं होता।
सत्ताधारी दल द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) ने चुनाव में नीट परीक्षा को समाप्त करने का वादा किया था और हाल ही में मद्रास हाई कोर्ट के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश ए के राजन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। समिति का उद्देश्य मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए सामाजिक रूप से वंचित वर्ग के परीक्षार्थियों पर नीट परीक्षा के प्रभाव का आकलन करना है।
मुख्य न्यायाधीश संजीव बनर्जी और न्यायमूर्ति सेंथिलकुमार राममूर्ति की प्रथम पीठ ने सरकार से जो सवाल पूछे उनमें से एक था, “क्या आपने सुप्रीम कयरत (जिसने नीट परीक्षा कराने को कहा था) से अनुमति ली है? क्या यह कोर्ट के फैसले का उल्लंघन नहीं होगा?”
पीठ ने भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश सचिव के. नागराजन की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह प्रश्न किए। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि समिति का गठन व्यर्थ किया गया कार्य है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि तमिलनाडु को नीट परीक्षा को स्वीकार करना होगा।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को समिति गठित करने के पहले सुप्रीम कोर्ट से सहमति लेनी चाहिए थी। महाधिवक्ता आर. षण्मुगसुंदरम ने न्यायाधीशों को बताया कि समिति का गठन राज्य सरकार द्वारा लिया गया एक नीतिगत निर्णय था, जिसका वादा चुनाव में किया गया था।
उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों के हितों की रक्षा के लिए यह निर्णय लिया गया। इस पर पीठ ने कहा, “हो सकता है। लेकिन यदि यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विरुद्ध है, तो इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती।” न्यायाधीशों ने राज्य और केंद्र सरकार को नोटिस भेजकर एक सप्ताह में जवाब तलब किया है।