महाराष्ट्र राजस्व विभाग ने भूमि अभिलेख प्रणाली का किया मानकीकरण, अधिकारियों को समझने में होती थी परेशानी - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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महाराष्ट्र राजस्व विभाग ने भूमि अभिलेख प्रणाली का किया मानकीकरण, अधिकारियों को समझने में होती थी परेशानी

महाराष्ट्र सरकार के राजस्व विभाग ने राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग तरह से इस्तेमाल की जाने वाली शब्दावली में एकरूपता लाकर भूमि अभिलेख प्रणाली के मानकीकरण और इन दस्तावेजों को त्रुटि-मुक्त बनाने में सफलता हासिल करने का दावा किया है।

भारत को 1947 में आजादी मिली उससे पहले यहां विभिन्न रजवाड़ों का शासन चलता था। अपने क्षेत्र में राजा खुद तय करते थे, कि वहां के नियम कायदे क्या-क्या होंगे। राजा प्रजा पर काफी अत्याचार भी करते थे, वहीं अब लोकतंत्र में ऐसा नहीं है। स्वतंत्रता से पहले, महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग शासकों का नियंत्रण था और उनकी अपनी भूमि रिकॉर्ड प्रणाली और शैली थी। 
स्वतंत्रता से पहले राजाओं का अपना अलग था भूमि रिकॉर्ड 
दरअसल, महाराष्ट्र सरकार के राजस्व विभाग ने राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग तरह से इस्तेमाल की जाने वाली शब्दावली में एकरूपता लाकर भूमि अभिलेख प्रणाली के मानकीकरण और इन दस्तावेजों को त्रुटि-मुक्त बनाने में सफलता हासिल करने का दावा किया है। स्वतंत्रता से पहले महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग शासकों का नियंत्रण था और उनकी अपनी भूमि रिकॉर्ड प्रणाली और शैली थी। यहां तक ​​कि भूमि के स्वामित्व, साझा स्वामित्व और स्थान या उपयोग के अनुसार भूमि के वर्गीकरण के वर्णन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले शब्द भी काफी भिन्न थे।
अपने-अपने हिसाब से था शब्दों का प्रयोग 
राज्य के राजस्व विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि पिछले 75 वर्षों में, राजस्व प्रशासन को भूमि अभिलेखों के रख-रखाव, स्वामित्व में परिवर्तन और भूमि की श्रेणी में बदलाव के मामले में भारी समस्याओं का सामना करना पड़ा है, क्योंकि प्रत्येक क्षेत्र अपने-अपने हिसाब से शब्दों का इस्तेमाल कर रहा था तथा इसकी वजह से कानूनी जटिलताएं भी बढ़ गयी थीं। भू-अभिलेख विभाग के एक वरिष्ठ राजस्व अधिकारी ने कहा, ‘‘भूमि अभिलेख दस्तावेजों में 46 विभिन्न बिंदुओं के वर्णन के लिए महाराष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग शब्दों का इस्तेमाल किया जाता था। राज्य के आठ राजस्व प्रभागों में से प्रत्येक के पास भूमि, उसके स्वामित्व और उपयोग के अनुसार उसके वर्गीकरण का वर्णन करने के लिए शब्दों का एक अलग विकल्प है।’’
राजस्व अधिकारियों को होती थी बड़ी समस्या
उन्होंने आगे कहा कि राज्य का राजस्व विभाग इन भिन्नताओं को दूर करने और एक मानक प्रारूप के माध्यम से एकरूपता लाने में कामयाब रहा है। उन्होंने कहा कि राजस्व अधिकारियों को जब भी एक संभाग से दूसरे संभाग में स्थानान्तरित किया जाता था तो इसी समस्या का सामना करना पड़ता था और इसे ठीक करने में विभाग को लगभग दो दशक लग गए।
भूमि अभिलेख विभाग ने सभी अभिलेखों के डिजिटलीकरण और इसे लोगों के लिए उपलब्ध कराने के लिए एक कम्प्यूटरीकरण कार्यक्रम शुरू किया है। राजस्व विभाग में काम कर चुके एक सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी ने कहा, ‘‘भूमि अभिलेखों का पुराना प्रारूप लगभग 100 वर्षों तक अपरिवर्तित रहा। हालांकि, पिछले कुछ दशक में, राजस्व विभाग इन दस्तावेजों को त्रुटि-मुक्त बनाने के लिए विवश था, क्योंकि पहले के जटिल प्रारूप के कारण सरकार भी कुछ मामलों में जमीन का अधिग्रहण नहीं कर पाई थी।’’

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