आज वर्ल्ड लंग कैंसर डे (World Lung Cancer Day) है। फेफड़ों (Lungs) से जुड़े इस कैंसर का सबसे बड़ा कारण होता है धूम्रपान। गुटखा और सिगरेट से होने वाले इस आम कैंसर के बारे में तमाम जागरुकता अभियान चलाए जाते हैं। बावजूद इसके World Health Organisation (WHO) की एक रिपोर्ट के मुताबिक 76 लाख के ज्यादा लोग हर साल बीमारी का शिकार होते हैं।
आपको बता दे कि हर कोई अपनी जीविका के लिए बड़े शहर की ओर भागता है, लेकिन शहर जितना देता है उससे कहीं अधिक ले लेता है। वही , दिल्ली के मशहूर सर गंगाराम हॉस्पिटल द्वारा जारी की गई ताज़ा रिपोर्ट में बेहद चौंकाने वाला ख़ुलासा हुआ है। रिपोर्ट कहती है कि सिगरेट ना पीने वाले लोग यानी नॉन स्मोकर्स में भी फेफड़ों का कैंसर हो रहा है।
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गंगाराम अस्पताल के लंग्स सर्जन डॉ अरविंद कुमार ने बताया कि स्टडी से साबित हो गया है कि लंग्स कैंसर में प्रदूषण की अहम भूमिका है। स्टडी में शामिल 150 मरीजों में से 74 ने कभी स्मोकिंग नहीं की थी। इन्हें लंग्स कैंसर होना बताता है कि शहर में तेजी से बढ़ रहा वायु प्रदूषण फेफड़ों को खराब कर रहा है।
अरविंद कुमार ने बताया कि फेफड़े का कैंसर खतरनाक बीमारी है और इसके निदान के बाद पांच साल तक जीवित रहने की उम्मीद होती है। धूम्रपान नहीं करने वाले युवाओं और महिलाओं में बढ़ते मामले को देखकर हम हैरान रह गए। इनमें सबसे ज्यादा लंग कैंसर की शिकायत 51 से 70 साल के मरीजों में है।
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आमतौर पर ये माना जाता है कि लंग कैंसर की धूम्रपान मुख्य वजह है लेकिन ठोस सबूत हैं कि फेफड़े के कैंसर के बढ़ते मामलों में प्रदूषित हवा की भूमिका बढ़ रही है।
बता दे कि वातावरण में मौजूद प्रदूषित कणों में उतने ही केमिकल्स होते हैं, जितने एक सिगरेट में होते हैं। पीएम 2.5 का लेवल 250 से ऊपर होने का मतलब है कि हर इंसान रोजाना 10 सिगरेट के बराबर स्मोक कर रहा है। दिल्ली में पैदा होने वाला हर बच्चा अपनी पहली सांस लेते ही स्मोकर बन रहा है। 25 से 30 साल का होते होते वह लंग्स का मरीज बन जाता है, चाहे स्मोक करे या न करें।
वही ,चेस्ट मेडिसिन डिपार्टमेंट के अध्यक्ष नीरज जैन ने बताया कि समय रहते पता चले तो लंग कैंसर का इलाज संभव है। अस्पताल में कम डोज वाला सीटी स्कैन स्क्रीनिंग प्रोग्राम शुरू किया गया है। 51 साल से अधिक उम्र के लोगों को यह स्क्रीनिंग जरूर करानी चाहिए।