ओडिशा में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को उचित सुविधाओं से वंचित किए जाने के आरोपों के बीच राज्य सरकार ने उनकी गणना के लिए एक सर्वेक्षण कराने का फैसला किया है। सर्वेक्षण की प्रक्रिया 12 जुलाई तक पूरी कर ली जाएगी। ओडिशा पिछड़े वर्ग के लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर डेटा एकत्र करने वाला बिहार के बाद दूसरा भारतीय राज्य होगा।
ओडिशा में पिछड़ा वर्ग की हिस्सेदारी 54 फीसदी के आसपास
विपक्षी दल 2024 के लोकसभा चुनाव और राज्य विधानसभा चुनाव से पहले उठाए गए इस कदम को पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को लुभाने की सत्तारूढ़ बीजू जनता दल (बीजद) की कोशिश के तौर पर देख रहे हैं। ओडिशा की कुल आबादी में पिछड़ा वर्ग की हिस्सेदारी 54 फीसदी के आसपास है। राज्य सरकार ने तर्क दिया है कि सर्वेक्षण से पिछड़े वर्गों के सामाजिक-आर्थिक विकास को सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी नीतियां बनाने में मदद मिलेगी।
अधिकारियों ने बताया कि बीजद सरकार ने ओडिशा राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (ओएससीबीसी) के गठन के बाद मई और जून 2021 में ओबीसी सर्वेक्षण कराने का फैसला किया था, लेकिन कोविड-19 की दूसरी लहर के चलते इस योजना को टालना पड़ा।
50 फीसदी की आरक्षण सीमा से अधिक!
ओएससीबीसी ने ओडिशा में 209 समुदायों की पहचान सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) के रूप में की थी। यह संख्या अब बढ़कर 231 हो गई है, क्योंकि राज्य मंत्रिमंडल ने ओडिशा की ओबीसी सूची में 22 और जातियों को शामिल करने की हाल ही में मंजूरी दे दी है।
ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत कोटा आवंटित करने के राज्य सरकार के पहले के प्रयास को ओडिशा प्रशासनिक अधिकरण में चुनौती दी गई थी, क्योंकि यह उच्चतम न्यायालय द्वारा सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और सामाजिक तथा शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग (एसईबीसी) के लिए निर्धारित 50 फीसदी की आरक्षण सीमा से अधिक था।
राज्य सरकार को ओबीसी कोटा को घटाकर 11.25 प्रतिशत पर लाना पड़ा था। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य सचिव वी वी यादव ने बताया कि राज्य सरकार ने इस श्रेणी के लोगों की सामाजिक और शैक्षिक स्थिति के सर्वेक्षण को फिर से शुरू करने संबंधी ओएससीबीसी प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है।