नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन में शामिल होने के बाद झारखंड के प्रसिद्ध नागपुरी गायक मधु मंसूरी ने कहा कि वह अब निष्पक्ष रहकर राजनीती से दूर रहना चाहते हैं क्योंकि पद्म सम्मान ने ‘लक्ष्मण रेखा’ खींच दी है। बता दें पद्मश्री के लिए चुने जाने वाले दिन ही उन्होंने कथित तौर पर सीएए के विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए जिसके कारण वह चर्चा में रहे।
‘गांव छोड़ब नाही , जंगल छोड़ब नाही’ जैसे गीतों से झारखंड आंदोलन की सांस्कृतिक मशाल जलाने वाले मंसूरी का नाम इस साल पद्मश्री पाने वालों की सूची में शामिल है। उन्होंने कहा ,‘‘ वे हर विषय पर बोल सकते हैं लेकिन बोलना नहीं चाहते हैं। वे किसी विवाद में नहीं पड़ना चाहता। सांस्कृतिक कर्मी होने के नाते राजनीति पर कुछ भी बोलना नहीं चाहते हैं।’’ अब तक 3000 से अधिक मंचों पर प्रस्तुति दे चुके 72 वर्ष के मंसूरी ने सीएए के बारे में उनका विचार पूछने पर कहा ,‘‘ वे निष्पक्ष हैं और देश के नियम कानून को मानते हैं। उसे नहीं मानने का क्या मतलब। पहले कोई चीज लागू तो हो, फिर देखा जायेगा कि सही है या गलत। पेड़ लगने पर ही पता चलेगा कि फल कैसे हैं ।’’
उन्होंने कहा ,‘‘वे राजनीति से दूर रहना चाहते हैं । बतौर कलाकार राजनीतिज्ञों का संरक्षण चाहिये लेकिन राजनीति नहीं करनी ।’’राजनीति से दूर रहने के बारे में उन्होंने कहा ,‘‘ अब तो वैसे भी पद्मश्री सम्मान ने एक ‘लक्ष्मण रेखा’ खींच दी है।’’ मंसूरी ने स्पष्ट किया ,‘‘ उस दिन वे प्रदर्शन स्थल पर गए थे लेकिन एनआरसी की बैठक में नहीं शमिल हुए थे। जनवादी लेखक संघ ने उस विद्यालय के प्रांगण में उन्हें बुलाया था। उन्होंने कहा उन्हें बुलाया गया था लेकिन उन्होंने साफ तौर पर कहा कि वहां जाने की उनकी औकात नहीं है।’’
पद्मश्री को सबसे बड़ा सम्मान बताते हुए उन्होंने कहा कि इससे नयी ऊर्जा के साथ वह झारखंडी संस्कृति, साहित्य, नाटक पर काम करेंगे। बारह बरस की उम्र में झारखंड आंदोलन में पहला गीत गाने वाले इस कलाकार ने कहा ,‘‘ हम चाहते हैं कि झारखंड में नीचे स्तर से लेकर राज्य के कामकाज तक, सब हमारी भाषा में हो। बंगाल में बंगाली और बाकी राज्यों में जैसे उनकी भाषा में कामकाज होता है, वैसे ही यहां भी होना चाहिये।’’उन्होंने कहा कि वह सरकार से लोक कलाकारों की आर्थिक स्थिति बेहतर करने की दिशा में प्रयास का भी अनुरोध करेंगे।
मंसूरी ने कहा ,‘‘लोक कलाकारों की आर्थिक स्थिति बहुत खराब होती है। उन्हें पेंशन मिलनी चाहिये, आर्थिक सहायता मिलनी चाहिये। पढे़ लिखे हैं तो नौकरी मिले। समय आने पर हम अनुरोध करेंगे और करना भी चाहिये।’’ इस सम्मान का श्रेय अपने पिताजी , अपने प्रेरणास्रोत झारखंड के प्राकृतिक सौंदर्य और झारखंड की जनता से मिले प्रेम को देते हुए उन्होंने बताया कि आदिवासियों के प्रेम ने उन्हें कभी अभाव महसूस नहीं होने दिया। उन्होंने कहा ,‘‘हम करीब करीब भूमिहीन हैं लेकिन झारखंड के आदिवासियों ने हमें जमीन दी जिस पर हमारे बेटे खेती करते हैं। कार्यक्रम में दो हजार, चार हजार रूपया मिल जाता है और इसी तरह जीवन चलता आया है। लोगों के प्यार ने कोई कमी महसूस नहीं होने दी।’’