सुप्रीम कोर्ट ने अनुशासनात्मक जांच के बाद अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त किए गए पुलिस कांस्टेबल को अनुकंपा पेंशन (Compassionate Pension) देने से संबंधित मामले में गुजरात सरकार द्वारा हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने में देरी किए जाने पर नाराजगी व्यक्त की है और उसकी याचिका को खारिज कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार पर 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपील दायर करने में राज्य सरकार के बहुत विलंब करने पर नाराजगी जाहिर की। कोर्ट ने कहा कि जिस परिस्थिति में अनुकंपा पेंशन के लिए निर्देश जारी किया गया था, वह यह था कि व्यक्ति का एक बच्चा मानसिक रूप से विक्षिप्त था और दूसरा पोलियो प्रभावित था।
हाई कोर्ट के एकल न्यायाधीश ने फरवरी 2017 में, प्राधिकरण को 21 मार्च, 2002 से व्यक्ति को अनुकंपा पेंशन देने और आदेश प्राप्त होने की तारीख से एक महीने की अवधि के भीतर बकाया भुगतान करने का निर्देश दिया था। हाई कोर्ट की खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था।
अपील दायर करने के तरीके को खारिज करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पुलिस उपायुक्त, यातायात शाखा, अहमदाबाद और गुजरात के गृह विभाग द्वारा हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका दायर करने में 856 दिनों की देरी हुई थी।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने कहा कि जिस परिस्थिति में गुजरात सिविल सेवा (पेंशन) नियम 2002 के नियम 78 और 79 के तहत अनुकंपा पेंशन के लिए निर्देश दिया गया था, वह यह था कि व्यक्ति का एक बच्चा मानसिक रूप से विक्षिप्त था और दूसरा पोलियो प्रभावित था।
पीठ ने पांच जुलाई के अपने आदेश में कहा, ‘‘गुजरात राज्य ने खंडपीठ के समक्ष 200 दिनों की देरी के साथ मामले को रखा और अब 856 दिनों की देरी के साथ संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत एक विशेष अनुमति याचिका में हमारे सामने है।’’ पीठ ने कहा, ‘‘हम देरी को नजरअंदाज नहीं कर सकते।’’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘‘हम इस तरह उस तरीके को अस्वीकार करते हैं जिसमे गुजरात राज्य ने विलंब के साथ इस कोर्ट का रूख किया है और विलंब किए जाने के आधार पर विशेष अनुमति याचिका खारिज की जाती है। याचिकाकर्ता को चार सप्ताह के भीतर सुप्रीम कोर्ट कानूनी सेवा समिति के पास 25,000 रुपये की राशि जमा करनी होगी।’’
एकल न्यायाधीश द्वारा फरवरी 2017 में दिये गये फैसले के बाद, प्राधिकरण ने जुलाई 2018 में खंडपीठ का रूख किया था जिसने 200 दिनों की देरी के आधार पर आवदेन को खारिज कर दिया था।