शिक्षा और नौकरियों में मराठा समुदाय के लिए आरक्षण का प्रावधान करने संबंधी महाराष्ट्र सरकार के कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 27 जुलाई से रोजाना वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। वहीं कोर्ट ने बुधवार को मामले में सुनवाई करते हुए मराठा आरक्षण पर किसी प्रकार की अंतरिम रोक लगाने से इंकार कर दिया।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट की पीठ ने इस मामले की वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए सुनवाई करते हुए कहा कि कोविड-19 महामारी की वजह से इस मामले की कोर्ट रूम में सुनवाई की संभावना बहुत ही कम है। पीठ ने संबंधित पक्षकारों से कहा कि वे एकसाथ बैठकर सुनवाई की प्रक्रिया के बारे में फैसला करें। वे यह तय करें कि कौन पक्षकार कितना समय लेगा और कोई भी दलीलों को दोहरायेगा नहीं।
इस मामले की सुनवाई के दौरान कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि इस तरह के मुकदमे की सुनवाई कोर्ट रूम में ही होनी जरूरी है। उन्होंने कहा, ‘‘अगर हम विवश हैं, तो हमें यथाशीघ्र की तारीख दीजिए। इस मामले में जल्द सुनवाई की आवश्यकता है। हमें अंतरिम राहत की अवधारणा पर फिर से विचार करने की आवश्यकता पड़ सकती है।’’
उन्होंने कहा कि इस मामले में पोस्ट ग्रेज्युएट छात्रों के पूरे समूह का भविष्य दांव पर लगा हुआ है। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण के मसले पर भी सुनवाई की आवश्यकता है। पीठ ने कहा कि अगर सुनवाई की आवश्यकता हुई तो इस पर विचार किया जाएगा।
दीवान ने कहा कि 12 से 13 फीसदी आरक्षण काफी ज्यादा है जिसे अलग कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और नौ सदस्यीय संविधान पीठ का वह फैसला मानने के लिए बाध्य है जिसमें कहा गया है कि आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
पीठ ने कहा कि वह इस मामले को 27 जुलाई के लिए सूचीबद्ध कर रही है। अधिवक्ता शिवाजी एम जाधव ने पीठ से कहा कि इस मामले के 1000 पन्नों के संकलन को देखते हुये वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से इसकी सुनवाई संभव नहीं है। पीठ ने अधिवक्ता से पूछा उन्हें क्या लगता है कि कोविड-19 कब तक खत्म हो जाएगा और कोर्ट में नियमित काम शुरू हो जाएगा?
महाराष्ट्र में नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के मामलों में मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की व्यवस्था के लिए राज्य में सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण कानून, 2018 लागू किया गया था। बंबई हाई कोर्ट ने पिछले साल 27 जून को अपने फैसले में इस कानून को सही ठहराते हुए कहा था कि 16 फीसदी का आरक्षण न्यायोचित नहीं है और इस कानून के तहत रोजगार के लिए 12 प्रतिशत तथा शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के लिए 13 फीसदी आरक्षण का प्रावधान होना चाहिए।
हाई कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील लंबित हैं। कोर्ट में सात जुलाई को इस मामले में पेश कुछ वकीलों ने कहा था कि इन याचिकाओं पर कोर्ट में सुनवाई की आवश्यकता है क्योंकि वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए हो सकता है कि इस पर उचित तरीके से न्याय नहीं हो सके। पीठ ने उस समय भी कहा था कि फिलहाल कोर्ट में सुनवाई संभव नहीं होगी और वह अगले सप्ताह इस मामले में अंतरिम राहत के पहलू पर विचार करेगी।
कोविड-19 महामारी संक्रमण की वजह से सुप्रीम कोर्ट अभी वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से ही मुकदमों की सुनवाई कर रही है। कोर्ट ने छह एमबीबीएस डॉक्टरों की एक अलग याचिका पर पिछले महीने महाराष्ट्र सरकार से जवाब मांगा था। इस याचिका में यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया था कि 12 प्रतिशत का मराठा आरक्षण मेडिकल के पीजी और डेन्टल पाठ्यक्रमों में शैक्षणिक सत्र 2020-21 में लागू नहीं होगा। इससे पहले, कोर्ट ने पांच फरवरी को मराठा समुदाय के लिए आरक्षण का प्रावधान करने संबंधी कानून को सही ठहराने वाले हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था।