राज्यसभा के सदस्य एवं वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने नरोदा गाम दंगा मामले में सभी 67 आरोपियों को बरी करने के गुजरात की अदालत के फैसले की शुक्रवार को आलोचना की और सवाल उठाया कि ‘‘क्या हमें कानून के शासन का स्वागत करना चाहिए या इसके खत्म होने पर निराश होना चाहिए? गुजरात की एक विशेष अदालत ने बृहस्पतिवार को 2002 के नरोदा गाम दंगों के मामले में गुजरात की पूर्व मंत्री माया कोडनानी और बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी सहित सभी 67 आरोपियों को बरी कर दिया था। गोधरा मामले के बाद भड़के दंगों के दौरान, अहमदाबाद के नरोदा गाम में मुस्लिम समुदाय के 11 सदस्यों के मारे जाने के दो दशक से अधिक समय बाद विशेष अदालत का यह फैसला आया।
नरोदा गाम दंगे में कई मासूम की गई जान
सिब्बल ने इस फैसले को लेकर ट्वीट किया, ‘‘ नरोदा गाम : 12 साल की बच्ची सहित हमारे 11 नागरिक मारे गए थे। 21 साल बाद 67 आरोपियों को बरी कर दिया गया। क्या हमें कानून के शासन का स्वागत करना चाहिए या इसके खत्म होने पर निराश होना चाहिए?’’ इसके बाद उन्होंने पत्रकारों से कहा, ‘‘ किसी की हत्या हुई थी। यह पता लगाना जांच एजेंसी का काम है कि यह (हत्याएं) किसने की। जांच एजेंसियों ने पता लगाया। क्या यह जांच एजेंसियों की विफलता नहीं है कि वे उन्हें न्याय के दायरे में नहीं ला पाईं ?
Naroda Gam :
11 of our citizens including a 12 year old girl killedAfter 21 years
67 accused acquittedShould we :
Celebrate the rule of law
or
Despair its demise !— Kapil Sibal (@KapilSibal) April 21, 2023
जांच एजेंसी पर लगाया आरोप
सिब्बल ने कहा, ‘‘ क्या जांच एजेंसियां दोषमुक्ति या सजा की मांग कर रही हैं? मुझे यकीन है कि जांच एजेंसी अपील दायर नहीं करेगी। मुझे आश्चर्य है कि क्या अदालतें सुनवाई के दौरान सामने आ रही अन्याय की कहानियों को लेकर मूक दर्शक बनी रहेंगी ?अहमदाबाद स्थित विशेष जांच दल (एसआईटी) मामलों के विशेष न्यायाधीश एस. के. बक्शी की अदालत ने नरोदा गाम दंगों से जुड़े इस बड़े मामले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया है।
साबरमती एक्सप्रेस की बोगी में आग लगाए जाने के बाद राज्य में दंगे भड़के
गोधरा में 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस की बोगी में आग लगाए जाने के बाद राज्यभर में दंगे भड़क गए थे। इसी दौरान नरोदा गाम में दंगे हुए थे। इस मामले की जांच उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल ने की थी। इस मामले में कुल 86 आरोपी थे, जिनमें से 18 की सुनवाई के दौरान मौत हो गई, जबकि एक को अदालत ने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 169 के तहत साक्ष्य के आभाव में पहले ही आरोपमुक्त कर दिया था।