दिग्गज नेता सुवेंदु अधिकारी के बृहस्पतिवार को तृणमूल कांग्रेस से सभी संबंध तोड़ लेने के साथ ही केंद्र ने तीन आईपीएस अधिकारियों को तत्काल कार्यमुक्त करने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार को आज नया पत्र भेजा।
वहीं, राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र के कदम को ‘‘असंवैधानिक और अस्वीकार्य’’ करार देते हुए कहा कि यह ‘‘राज्य प्रणाली पर खुलेआम नियंत्रण’’ का प्रयास है तथा पश्चिम बंगाल ‘‘विस्तारवादी और अलोकतांत्रिक ताकतों’’ के सामने नहीं झुकेगा।
केंद्र का कदम ऐसे दिन आया है जब तृणमूल कांग्रेस के लोकप्रिय नेता सुवेंदु अधिकारी ने इन अटकलों के बीच पार्टी छोड़ दी कि वह शनिवार को पूर्वी मिदनापुर में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की रैली में भाजपा में शामिल हो सकते हैं।
वाम मोर्चा सरकार के खिलाफ नंदीग्राम आंदोलन का चेहरा रहे अधिकारी ने ममता बनर्जी को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा संबंधित आईपीएस अधिकारियों को कार्यमुक्त न करने की बात कहे जाने के पांच दिन बाद केंद्र ने आज नया पत्र जारी किया और राज्य सरकार से इन अधिकारियों को तत्काल कार्यमुक्त करने को कहा जिससे कि वे अपनी नई जिम्मेदारियां संभाल सकें।
अधिकारियों ने बताया कि पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव को भेजे गए पत्र में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा है कि आईपीएस काडर नियमों के मुताबिक, विवाद की स्थिति में राज्य को केंद्र का कहना मानना होगा।
गृह मंत्रालय ने कहा है कि तीन आईपीएस अधिकारियों को पहले ही नई जिम्मेदारियां दी जा चुकी हैं और उन्हें फौरन कार्यमुक्त किया जाना चाहिए।
तीन अधिकारी–भोलानाथ पांडे (पुलिस अधीक्षक, डायमंड हार्बर), प्रवीण त्रिपाठी (डीआईजी प्रेसिडेंसी रेंज) और राजीव मिश्रा (एडीजी दक्षिण बंगाल)– भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की राज्य की नौ और 10 दिसंबर को हुई पश्चिम बंगाल यात्रा के दौरान उनकी सुरक्षा के लिए जिम्मेदार थे।
डायमंड हार्बर में नड्डा के काफिले पर पिछले हफ्ते हमले के संदर्भ में ड्यूटी में कथित लापरवाही को लेकर केंद्र ने तीन आईपीएस अधिकारियों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर आने का निर्देश दिया था।
नाराज बनर्जी ने कहा, ‘‘‘‘ यह कदम, खासकर चुनाव से पहले संघीय ढांचे के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। यह पूरी तरह असंवैधानिक और पूरी तरह अस्वीकार्य है।’’
मुख्यमंत्री ने ट्वीट किया, ‘‘राज्य (पश्चिम बंगाल सरकार) की आपत्ति के बावजूद भारत (केंद्र) सरकार का पश्चिम बंगाल में सेवारत तीन आईपीएस अधिकारियों को केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर भेजे जाने संबंधी आदेश आईपीएस काडर कानून 1954 के आपातकालीन प्रावधानों और शक्ति का दुरुपयोग है।’’
उन्होंने एक अन्य ट्वीट में कहा, ‘‘हम केंद्र को राज्य प्रणाली पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण की अनुमति नहीं देंगे। पश्चिम बंगाल विस्तारवादी और अलोकतांत्रिक ताकतों के आगे नहीं झुकेगा।’’
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा कि पांडे को पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो में पुलिस अधीक्षक बनाया गया है जबकि त्रिपाठी को सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) में उपमहानिरीक्षक के तौर पर नियुक्ति दी गई है। वहीं, मिश्रा को भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) में महानिरीक्षक के रूप में नियुक्त किया गया है।
पत्र की प्रति पश्चिम बंगाल के पुलिस महानिदेशक को भी भेजी गई है।
पश्चिम बंगाल सरकार ने 12 दिसंबर को केंद्र सरकार को सूचित किया था कि वह तीन आईपीएस अधिकारियों को कार्यमुक्त नहीं कर पाएगी।
अखिल भारतीय सेवा के किसी भी अधिकारी को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर बुलाने से पहले राज्य सरकार की सहमति लेनी पड़ती है।
लेकिन इस मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भारतीय पुलिस सेवा (काडर) नियम 1954 के एक प्रावधान के तहत एकतरफा फैसला किया है।
भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा के काफिले पर हमले के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य में कानून एवं व्यवस्था की स्थिति पर स्पष्टीकरण के लिए 14 दिसंबर को पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को तलब किया था। हालांकि, राज्य सरकार ने इन दोनों अधिकारियों को भेजने से इनकार कर दिया था।
नड्डा के काफिले पर डायमंड हार्बर में हमले को लेकर पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ की रिपोर्ट के बाद इन दोनों शीर्ष अधिकारियों को दिल्ली आकर स्पष्टीकरण देने को कहा गया था।
डायमंड हार्बर तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख एवं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी का निर्वाचन क्षेत्र है।
धनखड़ ने कोलकाता में पत्रकार वार्ता में आरोप लगाया था कि पश्चिम बंगाल में कानून तोड़ने वालों को पुलिस और प्रशासन का संरक्षण प्राप्त है तथा विपक्ष द्वारा विरोध किए जाने पर उसे दबा दिया जाता है।
पश्चिम बंगाल सरकार ने नड्डा की यात्रा के दौरान ‘‘गंभीर सुरक्षा चूक’’ पर केंद्र द्वारा मांगी गई रिपोर्ट नहीं भेजी है।
दो बार विधायक रहे और दो बार लोकसभा सदस्य रहे सुवेंदु अधिकारी ने आज तृणमूल कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देने से पहले बुधवार को पश्चिम बंगाल विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था जिससे उनके भाजपा में शामिल होने की अटकलें तेज हो गई थीं।
अधिकारी ने लिखा, ‘‘मैं तृणमूल कांग्रेस के सदस्य के रूप में और पार्टी तथा इससे संबंधित संगठनों के सभी पदों से तत्काल प्रभाव से इस्तीफा दे रहा हूं।’’
पार्टी से अपना दो दशक पुराना संबंध खत्म करते हुए दिग्गज नेता ने अपने को दिए गए अवसरों के लिए बनर्जी का धन्यवाद व्यक्त किया और वह पार्टी सदस्य के रूप में गुजारे गए समय की कद्र करेंगे।
अधिकारी ने पिछले महीने बनर्जी के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल से तथा कई अन्य पदों से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन उन्होंने राजनीतिक स्थितियों को परखते हुए विधानसभा और तृणमूल कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफा देने में विलंब किया।
बुधवार रात उन्होंने आसानसोल नगर निकाय के प्रमुख जितेंद्र तिवारी और वरिष्ठ सांसद सुनील मंडल सहित तृणमूल कांग्रेस के कई असंतुष्ट नेताओं के साथ बंद कमरे में बैठक की।
पंदेवेश्वर निर्वाचन क्षेत्र से विधायक तिवारी ने हाल में आरोप लगाया था कि राज्य सरकार ‘‘राजीतिक कारणों’’ से औद्योगिक शहर को केंद्रीय कोष से वंचित कर रही है।
उन्होंने बृहस्पतिवार को आसनसोल नगर निगम प्रशासक बोर्ड के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था।
बैठक में मौजूद रहे तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दीप्तांग्शु चौधरी ने भी दक्षिण बंगाल राज्य परिवहन निगम के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है।
बनर्जी ने कहा कि जो लोग पार्टी की विचारधारा का पालन नहीं करते और जो टिकट मिलने को लेकर चिंतित हैं, केवल वही पार्टी छोड़ रहे हैं।
वहीं, भाजपा ने कहा कि यह तृणमूल कांग्रेस के पतन की शुरुआत है।
अधिकारी के फैसले की प्रशंसा करते हुए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुकुल रॉय ने कहा कि यह सत्तारूढ़ पार्टी के पतन का आरंभ है और ‘‘हम खुली बांहों से उनका (अधिकारी) स्वागत करेंगे।’’
अधिकारी का पूरा परिवार राजनीति में है। उनके पिता सिसिर अधिकारी और भाई दिब्येंदु अधिकारी लोकसभा के सदस्य हैं। उनके एक और भाई विधायक हैं तथा स्थानीय नगर निकाय का जिम्मा उनके पास है।
उनके परिवार का राज्य की 40-45 विधानसभा सीटों पर अच्छा-खासा प्रभाव है।