कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के वन अधिकार पट्टा मामले में कांग्रेस मुख्यमंत्रियों को कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करने के दिए निर्देश का छत्तीसगढ़ के आदिवासी नेताओं ने स्वागत किया है। आदिवासी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष विधायक सीतापुर अमरजीत भगत और कांकेर विधायक शिशुपाल सोरी ने आज यहां जारी बयान में कहा कि SC/ST की तरह वन अधिकार पट्टों के मामले में परंपरागत रूप से जंगलों में रह रहे लोगों के मामले में मोदी सरकार ने अपने उद्योग समर्थक और गरीब विरोधी चरित्र को उजागर किया।
उन्होने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मजबूत तरीके से जंगल में रहने वालों के अधिकारों के पक्ष को नही रखा और मूकदर्शक बनकर देखती रही। उन्होने कहा कि मोदी सरकार के इस मामले में अपनाए गए रवैये से स्पष्ट होता है कि वह पूरी तरीके से जंगल में रहने वालों के अधिकारों के खिलाफ है।
मोदी सरकार नहीं चाहती है कि ऐतिहासिक अन्याय को खत्म करने वाले महत्वपूर्ण वन अधिकार कानून के तहत जंगल में रहने वालों के वन अधिकारो को मान्यता दी जाए और उनको न्याय मिले। इस मामले में कोर्ट में अगली पेशी में छत्तीसगढ़ की परिस्थितियों को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रखा जाएगा और छत्तीसगढ़ जैसी परिस्थिति जिन अन्य राज्यों में हैं उनके लिए भी यही आग्रह और निवेदन छत्तीसगढ़ की सरकार कोर्ट से करेगी।
आदिवासी नेताओं ने कहा कि 22 जनवरी से छत्तीसगढ़ में वनाधिकार पट्टों के निरस्तीकरण और आवेदन नहीं किए जाने को लेकर छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने प्रक्रिया आरंभ कर दी है। 22 जनवरी को राज्य के मुख्य सचिव का इस संबंध में आदेश जारी हो गया है। 23 जनवरी को राज्य शासन के अधिकारियों, वन विभाग के अधिकारियों और वन अधिकार का आवेदन करने वालों के प्रतिनिधि जन संगठनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता स्वयं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने की है। इस बैठक में पूरी समीक्षा की प्रक्रिया में सभी पक्षों की भूमिका और सहभागिता तय की जा चुकी है और समीक्षा का काम शुरू हो चुका है।