पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ टीएमसी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बीजेपी नेता देबेन्द्र नाथ रॉय की मौत को ‘राजनीतिक हत्या’ बताए जाने के आरोपों से इंकार कर दिया है। राज्य सरकार ने दावा किया कि इस घटना की तत्परता के साथ राज्य की सीआईडी ने जांच की थी। बीजेपी नेता का शव पिछले साल जुलाई में उनके घर के पास ही लटका मिला था।
बीजेपी नेता की मौत की घटना का मामला सीबीआई को सौंपने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में पश्चिम बंगाल सरकार ने अपने जवाब में यह दावा किया है। न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ के समक्ष मंगलवार को यह मामला सुनवाई के लिए सूचीबद्ध था। याचिकाकर्ता शशांक शेखर झा और सैवियो रोड्रिग्स ने राज्य सरकार के हलफनामे पर अपना प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिये समय देने का पीठ से अनुरोध किया।
इस पर पीठ ने मामले को दो सप्ताह बाद सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया। राज्य सरकार ने अपने हलफनामे में दावा किया कि प्रदेश की सीआईडी ने शिकायत के सभी पहलुओं की जांच की और राय की मौत के कारणों का पता लगाया है तथा इस संबंध में सक्षम अदालत में आरोप पत्र भी दाखिल कर दिया गया है।
राज्य सरकार की ओर से मालदा जोन के सीआईडी के पुलिस उपाधीक्षक द्वारा दाखिल हलफनामे में इस बात से इंकार किया गया कि देबेन्द्र नाथ रॉय की मौत एक राजनीतिक हत्या थी या इसमें सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया गया या इसमें उसकी किसी भी तरह की भूमिका थी।
राय का शव 13 जुलाई, 2020 को उनके घर के निकट ही उत्तरी दिनाजपुर जिले के हेमताबाद में लटका मिला था। वह 2016 में मार्क्सवादी पार्टी के टिकट पर पश्चिम बंगाल विधान सभा के लिए विधायक निर्वाचित हुये थे और बाद में 2019 में बीजेपी में शामिल हो गये थे।
राज्य सरकार ने याचिका खारिज करने का अनुरोध करते हुये याचिकाकर्ताओं के इन आरोपों को झूठा और निराधार करार दिया है कि देबेन्द्र नाथ रॉय की पहले हत्या की गयी और इसके बाद उनका शव लटका दिया गया। हलफनामे के अनुसार 14 जुलाई को ही इस मामले की जांच रायगंज पुलिस से सीआईडी को सौंप दी गयी थी जिसने इसके सभी पहलुओं की जांच के बाद कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल कर दिया है।
हलफनामे में कहा गया है कि मृतक की पत्नी ने इस मामले की जांच सीबीआई को सौपने का अनुरोध करते हुए कलकत्ता हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। लेकिन हाई कोर्ट ने याचिका का यह कहते हुए निस्तारण कर दिया था कि उसे जांच एजेंसी के काम में किसी प्रकार का दुराग्रह नजर नहीं आया।