भोपाल (मनीष शर्मा) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने चित्रकूट के एक कार्यक्रम में कहा कि काल की कसौटी पर जो आयुर्वेद में है वह एलोपैथी में नहीं है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए कि एलोपैथी ठीक नहीं है। इस पैथी का भी एक अपना महत्व है। चिकित्सा में एक और विचार करना चाहिए, जैसे इंटीग्रेटेड थेरेपी एक अलग बात है, वैसे ही स्पेसिफिक थेरेपी भी है। हर व्यक्ति की प्रवृत्ति अलग-अलग होती है पॉलीसिस्टेमिक रिलीफ उसमें सब उपलब्ध है। उसकी कुछ हिस्ट्री है कुछ लक्षण है उसके आधार पर उपचार किया जाना चाहिए।
संघ प्रमुख भागवत ने कहा कि आज भी ग्रामीण और वनवासी क्षेत्रों में संस्कार जीवित है। ग्रामीण व वनवासी क्षेत्र में शिक्षा नहीं पहुंचने से नुकसान है वहीं शहरी क्षेत्र में इसी शिक्षा से कुछ नुकसान हुआ है। चित्रकूट में चार दिवसीय अखिल भारतीय प्रांत प्रचारकों की चार दिवसीय बैठक समापन के बाद डीआरआई के एक कार्यक्रम में भागवत पहुंचे थे। इस दौरान डीआरआई के चिकित्सकों ने यहां किये जा रहे शोध कार्यों की जानकारी उन्हें दी।
सत्य ही चिरंतन है, समय के अनुसार सबको बदलना होता है। आकांक्षाएं और अपेक्षाएं समाज में चलने वाली मानसिक प्रक्रिया है। हमे सदैव चिंतन करते रहना चाहिए। ऐसी कई बातों को कोरोना की वजह से बनी परिस्थितियों ने बता भी दिया है। इन्हें पहचानना होगा। इसमें जो शाश्वत है, सत्य है वही चिरंतन है... वही सस्टेनेबल है। जो असत्य है वह सत्य की कसौटी पर टिकने वाला नहीं है। उन्होंने यह बातें ग्रामीण और वनवासी क्षेत्र के लोगों में आकांक्षाओं और अपेक्षाओं के अनुरूप आ रहे तेजी से बदलाव पर कहीं। कहा, ग्रामीण क्षेत्र के लोगों में आकांक्षाओं एवं अपेक्षाओं के चलते बहुत तेजी से सामाजिक बदलाव आया है।