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मध्यप्रदेश में चाहे जो जीते, पर आयोग की साख दांव पर

मगर इस बार के मतदान के बाद कुछ ऐसी गड़बड़ियां सामने आई हैं, जो इससे पहले कम ही दिखी है। लिहाजा, आयोग की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है।

मध्यप्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव की मतगणना 11 दिसंबर को होगी और नतीजे भी उसी दिन सामने आ जाएंगे। ज्यादातर सीटें भारतीय जनता पार्टी या कांग्रेस के खाते में आ सकती हैं, मगर इस चुनाव में निर्वाचन आयोग की साख दांव पर लग गई है। मतदान के दौरान और मतदान के बाद की व्यवस्थाओं पर उठ रहे सवालों का आयोग संतोषजनक जवाब नहीं दे पा रहा है। मतदान के बाद ईवीएम को कड़ी सुरक्षा के बीच स्ट्रांगरूम में रखा गया है, उसके बावजूद अचानक बिजली का होना और बगैर सुधार कार्य के अपने आप आ जाना, स्ट्रांग रूम के भीतर सामान ले जाने का वीडियो वायरल होना, ईवीएम का दो से तीन दिन बाद विधानसभा क्षेत्रों से जिला मुख्यालय पहुंचना ऐसी घटनाएं हैं, जिनको लेकर निर्वाचन आयोग की ओर से जो वजहें बताई गई हैं, वे आसानी से किसी के गले नहीं उतर रही हैं।

राजधानी के सात विधानसभा क्षेत्रों की ईवीएम के लिए पुरानी जेल के परिसर को स्ट्रांगरूम में बदला गया है, यहां 30 नवंबर की सुबह अचानक डेढ़ घंटे के लिए बिजली चली गई और बाहर लगी एलईडी बंद हो गई। इतना हीं नहीं, स्ट्रांगरूम में लगे सीसीटीवी कैमरों के बंद होने की भी बात कही जा रही है।

भोपाल के स्ट्रांगरूम की बिजली गुल होने को लेकर प्रशासनिक अमले की ओर से जो बयान आए हैं, वे सवालों के घेरे में हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जिला निर्वाचन अधिकारी व जिलाधिकारी सुदाम खाडे का कहना है कि बिजली डेढ़ घंटे गुल रही और अपने आप आ गई, कोई सुधार कार्य नहीं हुआ। दूसरी ओर लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के कार्यपालन यंत्री (एक्जिक्यूटिव इंजीनियर) राजेश दुबे के अनुसार, बिजली गुल होने की उन्हें कोई जानकारी नहीं मिली, वह उस दिन 11 बजे जब पुरानी जेल परिसर पहुंचे तो बिजली थी।

 एक तरफ जहां भोपाल के स्ट्रांग रूम की बिजली गुल हुई तो सागर के खुरई विधानसभा क्षेत्र से मतदान के 48 घंटे बाद ऐसी बस से ईवीएम पहुंची, जिस पर नंबर तक नहीं था। इस पर प्रशासन रिजर्व मशीनें होने का तर्क दे रहा है। इस क्षेत्र से राज्य के परिवहन व गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह भाजपा के उम्मीदवार हैं। इसी तरह अनूपपुर जिले के कोतमा विधानसभा से मतदान के तीन दिन बाद ईवीएम जिला मुख्यालय पहुंचीं। सागर में मशीनें देर से आने पर नायब तहसीलदार राजेश मेहरा को निलंबित किया गया है। इसके अलावा कहीं भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।

 मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी वी.एल. कांताराव ने चुनाव संबंधी व्यवस्थाओं के लिए पूरी तरह जिलाधिकारी के जिम्मेदार होने की बात कही है, मगर इतनी बड़ी गड़बड़ियां सामने आने पर अब तक किसी भी जिलाधिकारी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। कांग्रेस की ओर से प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ, प्रचार अभियान समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव व सुरेश पचौरी और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ईवीएम की सुरक्षा और सामने आई गड़बड़ियों पर सवाल उठा चुके हैं तो दूसरी ओर भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह कहते हैं कि कांग्रेस को हार दिख रही है, इसलिए वह ईवीएम पर सारा दोषारोपण करने लगी है।

राकेश सिंह की यह बात दरअसल ‘पार्टी लाइन’ है। मध्यप्रदेश ही नहीं, केंद्र की सत्ता में भाजपा के आने के एक साल बाद से देशभर में जितने भी चुनाव हुए हैं, विपक्ष ईवीएम में गड़बड़ियों की शिकायत करता रहा है और जवाब वही मिलता रहा है, जो भाजपा के मप्र प्रदेशाध्यक्ष ने कही है। मुद्दा फर्जी मतदाताओं का भी उठा था, कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल ने भारत निर्वाचन आयोग के दरवाजे पर भी दस्तक दी थी, मगर शिकायतों पर खास अमल होता नहीं दिखा।

पड़ोसी राज्य गुजरात के चुनाव में भी कांग्रेस ने 20 शिकायतें आयोग में दर्ज कराई थीं, मगर कोई कार्रवाई नहीं हुई थी। राजनीतिक विश्लेषक साजी थॉमस ने कहा, ‘चुनाव आयोग एक सशक्त और संवैधानिक संस्था है, उसकी निष्पक्षता बनाए रखना और जो गड़बड़ियां सामने आई हैं, उसका संतोषजनक समाधान करना आयोग की जिम्मेदारी है।

जो गड़बड़ियां सामने आईं और अफसरों ने जो वजह बताई, वह आसानी से गले उतरने वाली नहीं है। लिहाजा, आयोग की साख दांव पर लगी है। अब आयोग की जवाबदारी और जिम्मेदारी है कि वह इन मामलों को गंभीरता से ले और आवश्यक कदम उठाए।’ चुनाव के दौरान ईवीएम पर राजनीतिक दल सवाल उठाते रहे हैं, मगर इस बार के मतदान के बाद कुछ ऐसी गड़बड़ियां सामने आई हैं, जो इससे पहले कम ही दिखी है। लिहाजा, आयोग की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। आयोग पर आमजन का भरोसा है और अगर यह भरोसा कमजोर होता है तो लोकतंत्र के लिए किसी भी सूरत में अच्छा नहीं माना जाएगा।

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