हलाला, एक से ज्यादा निकाह और शरिया कोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट एक बार फिर सुनवाई करेगा। इस बार 5 जजों की एक बेंच इस मामले में सुनवाई करेगी। बता दें कि इससे पहले 30 अगस्त 2022 को 5 जजों ने इस मामले में सुनवाई की थी। लेकिन जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस हेमंत गुप्ता रिटायर हो गए। पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जजों ने कहा था कि इस केस में एक नयी संविधान पीठ का गठन किया जाएगा।
पिछली संविधान पीठ के दो जज हुए रिटायर
इस मामले पर पीआईएल दाखिल करने वाले वकील अश्विनी उपाध्याय ने प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति जे.बी. पर्दीवाला की पीठ से गुहार लगाई कि इस मामले में संविधान की नई पीठ का गठन किया जाए, क्योंकि पिछली संविधान पीठ के दो न्यायाधीश-न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता रिटायर हो चुके हैं।
वता दें कि बीते साल 30 अगस्त को इस मुद्दे पर पांच जजों की एक बेंच ने सुनवाई की थी। इसमें मुख्य रूप से जस्टिस इंदिरा बनर्जी, हेमंत गुप्ता, सूर्य कांत, एमएम सुंदरेश और सुधांशु धूलिया शामिल थे। इस बेंच ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी), राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (एनसीएम) को जनहित याचिकाओं में पक्षकार बनाया था और उनसे जवाब मांगा था। लेकिन इसके कुछ ही समय बाद क्रमशः 23 सितंबर और 16 अक्टूबर को जस्टिस बनर्जी और जस्टिस गुप्ता रिटायर हो गए थे। जिस कारण ‘बहुविवाह’ और ‘निकाह हलाला’ के खिलाफ की गईं 8 याचिकाओं की सुनवाई के लिए नई बेंच के गठन की आवश्यकता पड़ गई।
इस मामले में भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में बहुविवाह और ‘निकाह हलाला’ को असंवैधानिक और अवैध घोषित करने का निर्देश देने का आग्रह किया है। इस संबध में जिन लोगों ने याचिका दायर की है उनका मानना है कि बहुविवाह और निकाह-हलाला जैसी प्रथाओं से मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है।
आखिर क्या है ‘बहुविवाह’ और ‘निकाह हलाला’ ?
अब आपके मन में सवाल उठ रहे होंगे कि आखिर ये बहुविवाह और निकाह हलाला क्या होते हैं? आपको बता दें कि शरिया या मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक, एक मुस्लिम शख्स बहुविवाह में चार पत्नियां रख सकता हैं। वहीं निकाह हलाला में अगर किसी महिला का तलाक हो चुका है और वह अपने शौहर से दोबारा शादी करना चाहती है तो उसे पहले किसी अन्य पुरुष के साथ शादी करनी होती है और फिर उससे तलाक लेना होता है। इसे लेकर कई बार सवाल उठते रहे हैं।जुलाई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर याचिका पर सुनवाई करने का फैसला लिया था।