भारत की राजधानी दिल्ली एनसीआर में किसानों का आदोंलन कई समय से देखा जा रहा हैं। इसी को देखते हुए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसान संगठनों में कुछ दलों अर्थात 22 ने राजनीतिक मोर्चा बनाकर सरकार के विरूध्द खडे़ हो गए हैं। हालांकि यह सब पंजाब विधानसभा में उतरने के बाद यह सब मतदाताओं को अपने पक्ष में करने में थोड़ी मुशिकल का सामना करना पड़ रहा हैं। ये संगठन ‘संयुक्त समाज मोर्चा’’के नाम से चुनाव मैदान में उतरे हैं।मोर्चे के पंजाब विधानसभा चुनाव में लड़ने के फैसले का कुछ सबसे प्रभावशाली किसानों संगठनों ने ही विरोध किया है जिनमें भारतीय किसान यूनियन (एकता उगराहां) प्रमुख है।
सिध्दातों से कोई समझौता नहीं
जानकारी के मुताबिक, यूनियन के प्रमुख जोगिंदर सिहं उगराहां ने कहा कि वह सिद्धांतों से समझौता नहीं कर सकते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हम एक साथ न्यूनतम साझा कार्यक्रम के तहत केंद्रीय कानूनों का विरोध करने के लिए आए, जो संगठनों को इस तरह का कदम उठाने से रोकता है।’’ उगराहां के संगठन की करीब 1,600 गांवों में उपस्थिति है। उन्होंने कहा कि जैसे ही 22 किसान संगठनों ने चुनाव लड़ने का फैसला किया, उन्हें संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) में हिस्सा लेने से रोक दिया गया। उल्लेखनीय है कि एसकेएम कई संगठनों का साझा मंच है जिसने कृषि कानून के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया है।उगराहां ने कहा, ‘‘ अब गेंद उनके पाले में है। उन्हें इस मुद्दे पर स्थिति स्पष्ट करनी होगी।’’
किसान संगठनों की राजनीतिक इकाई
क्रांतिकारी किसान यूनियन के प्रमुख डॉ.दर्शन पाल ने भी कुछ इसी तरह की राय रखी। उन्होंने किसान संगठनों की राजनीतिक इकाई को खारिज करते हुए कहा कि इतिहास बताता है कि किसान प्रदर्शन की तरह आंदोलन से अगर किसी भी पार्टी का जन्म हुआ तो वह सफल नहीं रही। पाल ने दावा किया कि एसएसएम में शामिल अधिकतर संगठन पहले ही अलग हो चुके हैं।भाकियू के उगराहां धड़े की सुनाम इकाई की उपाध्यक्ष रणदीप कौर ने कहा कि वह मोर्चा के विरोध में अपने नेतृत्व के साथ है।
किसानों का मुद्दा
सूत्रों के मुताबिक, दिल्ली की सीमा पर केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ करीब एक साल तक चले आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल रूपिंदर ने कहा, ‘‘उन्हें दबाव समूह की तरह काम करना चाहिए बजाय राजनीतिक दल बनाकर चुनाव में उतरने के।’’किसान नेता ही नहीं लोग भी संयुक्त समाज मोर्चा के कदम से असहज हैं।संगरूर के दिड़बा सीट से मतदाता और आढ़ती भगवान दास ने कहा कि उन्हें कम से कम लोकसभा चुनाव तक का इंतजार करना चाहिए था। उन्होंने कहा कि संगठनों को पहले किसानों का मुद्दा सुलझाना चाहिए था। दास के मुताबिक चुनाव लड़ने और यहां तक कुछ सीटों पर जीत दर्ज करने से भी किसानों को लाभ नहीं होगा।उन्होंने कहा,‘‘सबकुछ केंद्र के नियंत्रण में हैं। उन्हें दबाव समूह की तरह काम करना चाहिए था और किसानों के मुद्दों का समाधान कराने के लिए जरूरत पड़ने पर प्रदर्शन करना चाहिए था। उनकी जमानत भी जब्त हो जाएगी।’’संगरूर के रतोल कलां निवासी और पेशे से किसान गुरशंगदीप सिंह भी इस घटना से निराश हैं।
टिकट पर उठाया गया सवाल
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सामाजिक कार्यकर्ता स्वर्णजीत सिंह ने अपने फोन में व्हाट्सऐप संदेश दिखाते हुए कहा कि मोर्चा में शामिल 22 से 16 सगंठन पहले ही अलग हो चुके हैं।उन्होंने मोर्चा द्वारा बांटी गई टिकटों पर भी सवाल उठाया और संकेत दिया कि इसके नेतृत्व को भाजपा का समर्थन मिल रहा है।रुपिंदर सिंह (33) से पूछा गया कि क्या उन्हें राजनीतिक दलों से उम्मीद है, तो उन्होंने इसका नकारात्मक जवाब दिया। उन्होंने कहा कि लोग सरकार से निराश हो चुके हैं जो अपने कार्यकाल के अधिकतर समय शांत रहती है और अंतिम कुछ महीनों में ही कुछ कार्य करती है।
फसलों की उचित कीमत
हालांकि, एएसएस के सुनाम सीट से प्रत्याशी एएस मान ने अपनी जीत की उम्मीद जताई। उन्होंने कहा कि मोर्चा के उम्मीदवार विधानसभा पहुंचने पर किसानों को उनकी फसल की उचित कीमत अधिक बेहतर तरीके से सुनिश्चित कर सकते हैं।कथित तौर पर, ‘‘दबाव समूह’’के विचार को खारिज करते हुए कहा समाधान चुनाव लड़ने में है। उन्होंने कहा, ‘‘यह गलत सोच है कि केवल धरना या ‘लाठी’ खाने से ही मुद्दे का समाधान हो सकता है।’’विरोधाभासी विचारों के बीच कीर्ति किसान यूनियन के पदाधिकारी कुलदीप सिंह ने संयुक्त किसान मोर्चा को बचाने पर जोर दिया।उन्होंने कहा, ‘‘ एसएसम को चुनाव लड़ने दें।अगर वे कुछ अच्छा कर सकते हैं तो करने दें। क्यो उनका विरोध करें।’’