राष्ट्रीय संस्था पीपुल फॉर एनिमल्स के प्रदेश प्रभारी बाबूलाल जाजू ने विगत ढाई वषो’ में 269 बाघों की हुई मौत पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि बाघों की मौत का मुख्य कारण राष्ट्रीय पाको’ की सुरक्षा व्यवस्था कमजोर होना और उनके अंगों का चीनी बाजार में महंगा बिकना है।
जाजू ने आज बताया कि चीन मृत बाघों के अंगों का सबसे बड़ा खरीददार है। चीन के बाजार में एक मृत बाघ की कीमत 60 लाख रऊपये आंकी जाती है। बाघ की खोपड़ी 500 डॉलर, खाल 20,000 डॉलर, मांस 100 डॉलर प्रतिकिलो, खून 600 डॉलर प्रतिलीटर, लिंग 4,000 डॉलर, पंजे तथा दांत 900 डॉलर, हड्डियां 6,000 डॉलर प्रतिकिलो तक अंतरराष्ट्रीय बाजार में बिक रहे हैं। भारत में सबसे अधिक तस्करी उथर प्रदेश से लगी हुई सीमा से होती है। नेपाली और तिब्बती तस्कर इसे अंजाम देते हैं। वर्ष 2015 में 80 बाघों की मौत हुई है, वहीं 2016 में 122, और 2017 में अभी तक 67 बाघों की मौत होना चिंताजनक है।
उन्होंने बताया कि टाईगर प्रोजेक्ट द्वारा विथ वर्ष 2015-16 में बाघ संरक्षण पर 380 करोड़ रुपये खर्च होने की बात कही गयी है। बाघों की मौजूदा संख्या के आधार पर सरकार प्रति बाघ लगभग 25 लाख रऊपये खर्च कर रही है।
उन्होंने आरोप लगाया कि टाईगर प्रोजेक्ट भारत में जीवित बाघों की संख्या 3,891 होने का दावा कर रहा है, जो झूठ का पुलिन्दा है। हकीकत में बाघों की संख्या लगभग 2,500 है। जाजू ने प्रोजेक्ट टाईगर के अध्यक्ष प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर बड़ी तादाद में हुई बाघों की मौत के जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने की मांग करते हुए टाईगर रिजर्व की सुरक्षा व्यवस्था सेना को सौंपने की मांग की है।