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मां ब्रह्मचारिणी को माना जाता है तपस्या और आराधना की प्रतीक,जानें इनकी संपूर्ण कथा

आज यानी 26 मार्च गुरुवार को नवरात्रि का दूसरा दिन है। इस दिन मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप ब्रह्राचारिणी  की पूजा की जाती है। यूं तो नवरात्रि के 9 दिनों का ही काफी ज्यादा महत्व होता है और इन दिनों पूजा करने का विशेष फल भी प्राप्त होता है। तो चालिए जानते हैं मां के ब्रह्राचारिणी स्वरूप के बारे में। 

मां ब्रहमचारिणी दो शब्दो से मिलकर बना है ब्रहा जिसका मतलब है तपस्या और चारिणी का अर्थ है चाचरण करने वाली। बता दें कि नवरात्रि के दिनों मां ब्रह्राचारिणी  की पूजा कर लने से इंसान में तप,त्याग और संयम की वृद्धि हो जाती है। 

मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप ब्रह्राचारिणी 

मां दुर्गा के नौ स्वरूपों में देवी ब्रह्राचारिणी  का दूसरा स्वरूप है। हमेशा कठोर तपस्या में लीन रहने वाली मां ब्रह्राचारिणी  के हाथों में माला और दूसरे हाथ में कमंडल होता है। इतना ही नहीं मां देवी ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए करीब हजारों सालों तक कठिन तप और उपवास किया था। 

देवी मां की तपस्या

शास्त्रों के मुताबिक ब्रह्राचारिणी कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी भगवान शिव शंकर की तपस्या में लीन रही। करीब हजार सालों तक भी उन्होंने केवल बिल्व पत्र ही खाएं और भगवान भोलेनाथ की आराधना करती रहीं। इसके अलावा कई हजार सालों तक बिना पानी और निराहार के मां ने तपस्या की है। 

आराधना और तपस्या का प्रतीक 

कड़ी तपस्या कर लेने के बाद भगवान शिव के पति रूप में प्राप्त होने का वरदान मिला। इसके बाद माता रानी अपने पिता के घर लौट आई। इस वजह से देवी का यह रूप तपस्या और आराधना का प्रतीक माना जाता है। 

ब्रह्राचारिणी देवी के पूजन से विजय की प्राप्ति

जो भी भक्त मां ब्रह्राचारिणी देवी की पूजा करता है उसे सर्वत्र और विजय की प्राप्ति होती है। इस दिन उन सभी कन्याओं की पूजा करी जाती है जिनकी शादी तय हो गई है,मगर अभी शादी नहीं हुई है। नवरात्रि के दूसरे दिन अपने घर कन्याओं को बुलाकर पूजन करने के बाद भोजन कराकर वस्त्र,पात्र आदि सभी चीजें भेंट करें।