यातायात के नियमों का पालन करने से सड़क पर हम सुरक्षित चल पाते हैं और यह करना आवश्यक भी है। ट्रैफिक सिग्नल्स भी इन्हीं नियमों में आते हैं। इनके बारे में आप सबको ही पता है।
लेकिन कई ऐसे लोग हैं जिन्हें इन ट्रैफिक सिग्नल की तीनों लाइट यानी लाल, पीली और हरी के बारे में यह नहीं पता है कि आखिर इन्हीं रंगों को ही क्यों इस्तेमाल किया जाता है। चलिए जानते हैं इनके पीछे के रहस्य को।
ट्रैफिक लाइट्स की इन तीनों रंगों का मतलब पहले हम आपको बताएंगे। ट्रैफिक लाइट में जो लाल रंग होता है उसका मतलब गाड़ी को रोकना होता है। पीला का मतलब आप आगे बढ़ने के लिए तैयार रहें और हरे का मतलब आप आगे जा सकते हैं।
10 दिसंबर 1868 में दुनिया में पहली ट्रैफिक लाइट लंदन के ब्रिटिश हाउस ऑफ पार्लियामेंट के सामने लगी थी। जेके नाईट नाम के रेलवे इंजीनियर ने इस लाइट केे बनाया और लगाया था। उस समय रात को ट्रैफिक लाइट आराम से दिख जाए जिसके लिए गैस भरी जाती थी। यह ट्रैफिक लाइट ज्यादा समय तक नहीं रह पाते थे और वह फट जाती थी। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ट्रैफिक लाइट में उस समय दो ही रंग होते थे और उनका ही इस्तेमाल किया जाता था।
साल 1890 में बिजली ट्रैफिक लाइट पहला सुरक्षित स्वतः संयुक्त राज्य अमेरिका में लगे थे। इसके बाद दुनिया के कोने-कोने में ट्रैफिक लाइट का इस्तेमाल किया जाने लगा। ट्रैफिक सिग्नल में लाल, पीले और हरे रंग के इस्तेमाल होने के बारे में हम आपको बताते हैं।
बाकी रंगों की अपेक्षा में लाल रंग बहुत गाढ़ा होता है। दूर से ही लाल रंग दिखाई दे जाता है। आगे खतरा होने का संकेत भी लाल रंग देता है जिसे देखकर आप रूक जाते हैं। इसी वजह से लाल रंग का इस्तेमाल किया गया।
पीले रंग का इस्तेमाल ट्रैफिक लाइट में इसलिए भी करते हैं क्योंकि इसे ऊर्जा और सूर्य का प्रतीक भी मानते हैं। इसका यह भी अर्थ होता है कि आप पहले अपनी सारी ऊर्जा समेट लें फिर सड़क पर चलने के लिए अपने आपको तैयार करें।
प्रकृति और शांति का प्रतीक हरे रंग को माना जाता है। हरे रंग को ट्रैफिक लाइट में इसलिए इस्तेमाल किया गया है क्योंकि वहां पर इसका अर्थ बिल्कुल उलट है। आंखों को हरा रंग सुकून देता है और आप किसी भी खतरे के बिना आगे सड़क पर चल सकते हैं।