1962 में भारत और चीन के बीच हुए युद्ध पर आधारित फिल्म ‘सूबेदार जोगिंदर सिंह’ को देश के साथ-साथ विदेशों में भी प्यार मिल रहा है। फिल्म में सिख रेजीमेंट के 21 जवान, उनके कप्तान और परमवीर चक्र विजेता सूबेदार जोगिंदर सिंह की कहानी है, जिन्होंने अचानक हुए चीनी हमले के आगे घुटने नहीं टेके और 21 भारतीय जवानों के साथ चीनी सेना से लोहा लिया।
‘सूबेदार जोगिंदर सिंह’ और उनके 21 जवानों ने इस बड़े हमले को लंबे समय तक रोके रखा और घायल हो जाने के बाद भी देश के इस हीरो ने अपनी पोस्ट को खाली नहीं किया। फिल्म में ‘सूबेदार जोगिंदर सिंह’ की भूमिका को अदा कर रहे गिप्पी ग्रेवाल की परफॉर्मेंस को खूब सराहा जा रहा है।
फिल्म दर्शकों को भावुक कर देती हैं। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे एक सैनिक कई भूमिकाओं को अदा करता है और उसके मन में तब भी सर्वप्रथम भारत माता ही होती है। फिल्म में एक किसान की जिंदगी भी और सूबेदार सिंह के गंभीर मिजाज को दिखाया जाएगा, इसके साथ ही उनका मस्तमौला अंदाज भी इसमें दिखेगा। जहां पंजाबी फिल्म अक्सर कॉमेडी के लिए ही जानी जाती है लेकिन इस तरह की फिल्म ने सभी का मन मोह लिया।
फिल्म को टेक्स फॅ्री करने की भी मांग की जा रही है। ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक यह फिल्म और इसका संदेश पहुंच सकें। फिल्म दर्शको को पूरे समय तक बांधे रखने में कामयाब साबित हो रही है। सैनिकों के मन में भारत माता के लिए अटूट प्रेम और बहादूरी के किस्सों को फिल्म बखान करती है।
गिप्पी ने ‘सूबेदार जोगिंदर सिंह’ की इस बायोपिक के लिए कड़ी महनत की है। उन्होंने पहले वजन कम किया और फिर बढ़ाया। फिल्म की शूटिंग कारगिल, द्रास, राजस्थान और असम की लोकेशंस पर हुई है। इसका प्रमुख हिस्सा 14,000 फुट की ऊंचाई पर शूट किया गया।
ये वह जगह है जहां पहुंचने में एक्टर्स और क्रू को कई घंटों की पैदल या गाड़ी से जर्नी करनी पड़ती थी। फिल्म के गाने भी लोगों को बेहद पंसद आ रहे हैं। ‘गल दिल दी’ तो ‘संदेशे आते हैं’ कि याद दिलवाता है। वहीं ‘इश्क दा तारा’ गाना पुराने पंजाब की झलक पेश करता है। अगर बात करे ‘हथियार’ की तो इसमें सैनिकों के शौर्य को दिखाया गया है।
कौन थे सूबेदार जोगिंदर सिंह
जोगिंदर सिंह सिख रेजिमेंट के असाधारण सैनिकों में से एक थे। उन्हें 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध के दौरान राष्ट्र की संप्रभुता की रक्षा के लिए, असाधारण साहस और उनके सर्वोच्च बलिदान के लिए सर्वोच्च वीरता पुरस्कार ‘परमवीर चक्र’ से नवाजा गया था।
यह सूबेदार जोगिन्दर सिंह की मानसिक दृढ़ता ही थी कि जिसकी वजह से गोला-बारूद खत्म होने के बाद अथवा उनकी जांघ पर गोली लगने के बावजूद भी उन्होंने ना सिर्फ अपने सैनिकों को लड़ाई के लिए प्रेरित किया बल्कि खुद भी अकेले ही दर्जनों चीनी सैनिकों को खंजरों से मौत के घाट उतारा था।
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