भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहाँ की आधी से अधिक आबादी खेती करके अपना जीवन यापन करती है। कृषि क्षेत्र में इतनी सम्भावना होने के बावजूद हमारे देश में किसानों के हालत क्या है ये आप सभी जानते है। आज हम आपको बता रहे है मोती की खेती के बारे में , अगर आप नहीं जानते तो आपको बता दें की भारत में मोतियों का करीब चार सौ करोड़ रुपये का सालाना कारोबार है।
मोतियों के विश्व बाजार में तकरीबन 50 फीसदी पर चीनी मोतियों का कब्जा है। उनका भारतीय मोतियों की तुलना में लगभग साठ से सत्तर प्रतिशत तक सस्ता होना। इसके बावजूद मोतियों की खेती से हर महीने एक से दो लाख रुपए तक की कमाई की जा सकती है।
इसके लिए बस मामूली लाख-दो लाख रुपए के निवेश और हल्के-फुल्के प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। आधुनिक डिजाइन तकनीक और पारंपरिक कला के इस्तेमाल से इसके बाजार में मालामाल होने की अपार संभावनाएं मौजूद हैं। भारत में इसके बीड्स जापान, चीन, ताइवान, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया से आयात किए जाते हैं।
अब बाजार में ज्यादातर आर्टिफिशियल मोती की ही भरमार है। भारत हर साल करीब पचास-पचपन करोड़ रुपए से अधिक के मोती इंपोर्ट करता है और लगभग सौ करोड़ तक एक्सपोर्ट। हमारे देश से ज्यादातर डिजानर मोतियों का एक्सपोर्ट होता है। कृषि विज्ञानी बताते हैं कि एक सामान्य जैविक प्रक्रिया में सीप का निर्माण एक खास ढांचे में होता है। आवरण की बाहरी कोशिकाएं एक उत्तक होती हैं जो मोती के सीप उत्पादन में सहायक होती हैं।
आवरण की बाहरी कोशिकाओं के उत्तक में जब बाहरी उत्तेजना होती है तब दूसरे शरीर से मोती का उत्पादन शुरू हो जाता है। मोती और कुछ नहीं, सिर्फ मुलायम खोलीदार सीप में जमा कैल्सियम कार्बोनेट होता है। अब मीठे पानी के सीप को घरेलू तालाब अथवा पानी की टंकी में पाल-पोषकर मोती की खेती की जा रही है।
मोती की खेती के लिए प्रशिक्षण जरूरी होता है। सरकारी संस्थानों अथवा मछुआरों से सीप खरीदने के बाद उनको खुले पानी में दो दिन तक छोड़ दिया जाता है। इससे उनकी ऊपरी पर्त और मांसपेशियां ढीली हो जाती हैं। इसके बाद सीपों की सर्जरी कर उनकी सतह पर छेद कर उसमें रेत का एक छोटा कण डाला जाता है।
यह रेत का कण जब सीप को चुभता है तो वह उस पर अपने अंदर से निकलने वाला पदार्थ छोड़ना शुरू कर देता है। सीपों को नायलॉन के बैग में रखकर जलाशय में बांस या पीवीसी के पाईप के सहारे छोड़ दिया जाता है। यह भी जान लेना जरूरी होगा कि खेती से पहले सीपों को कंटेनर या बाल्टी में रखना चाहिए।
सीप को जमा करने के बाद खेती के लिए उसे तैयार करना चाहिए। उन पर नल का पानी डालते रहना चाहिए। मोती की खेती में ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए उच्च गुणवत्ता जरूरी होती है। उत्पादक की अनुकूल जगह, ग्राफ्टिंग तकनीशियन, बाजार आदि तक पहुंच होनी चाहिए।
सीप को शल्यचिकित्सा के बाद नाइलोन के बैग में दस-बारह दिनों के लिए रखना चाहिए, जिसमे एंटीबायोटिक दवाओं का इलाज और प्राकृतिक भोजन शामिल होना चाहिए। उनकी रोजाना जांच होती रहे। आमतौर पर एक बैग में दो सीप रखने चाहिए। तालाब में जैविक और अकार्बनिक खाद समय-समय पर डालते रहना चाहिए ताकि प्लवक की उत्पादकता बरकरार रह सके।
इसलिए खेती शुरू करने से पहले सीप की जरूरत होती है, जो नदियों, नालों, तालाबों में मिल जाती है। इसे सात-आठ रुपए प्रति सीप मछुवारों से भी खरीदा जा सकता है। घर ले आने के बाद सीप में बीड डाली जाती है। पचीस बाइ पचीस फीट के तालाब में लगभग पांच हजार सीप के लिए एक बार में कुल लागत 12 हजार रुपए आती है।
इसमें प्रति सीप सात रुपये, लगभग सौ रुपए की दवाइयां, ढाई-ढाई हजार के जाल और टैंक, दो हजार के लैब इक्यूपमेंट, टूल, बाल्टी, टैंक आदि होते हैं। प्रशिक्षक इस बारे में सारी विधि बताते देते हैं।इंडियन काउंसिल फॉर एग्रीकल्चर रिसर्च के तहत एक नए विंग सीफा यानि सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वॉटर एक्वाकल्चर इसके लिए निशुल्क ट्रेनिंग कराती है।
इसका मुख्यालय भुवनेश्वर में है। इसमें सर्जरी समेत सभी कुछ सिखाया जाता है। मोती की खेती के लिए आप को मामूली दर पर 15 साल तक के लिए लोन मिल जाता है। समय-समय पर सरकार इस पर सब्सिडी भी देती रहती है। एक सीप से दो डिज़ाइनर मोती मिल जाते हैं। लगभग 15-20 महीने में सीप में मोती तैयार हो जाते हैं, जिनकी बाजार में कीमत तीन सौ रुपए से डेढ़ हजार रुपए तक मिल जाती है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी बेहतर क्वालिटी की कीमत दस हजार रुपए तक मिल जाती है।
यदि एक मोती की औसत कीमत आठ सौ रुपए भी हो तो 80 हजार तक की कमाई हो जाती है। सीप के अंदर किसी भी आकृति (गणेश, ईसा, क्रॉस, फूल, आदि) का फ्रेम डाल देते हैं, पूरी प्रक्रिया के बाद मोती यही रूप लेता है। इस तरह के मोतियों की मांग ज्यादा है। यह तो रहे छोटे पैमाने पर मोती की खेती की लागत और कारोबार के ब्योरे।
जितना अधिक सीप पालेंगे, उतना बड़ा मुनाफा। प्रति हजार सीप लगभग एक लाख का खर्चा बैठता है। इस तरह फसल तैयार होने तक पंद्रह-बीस महीने के बाद हर माह लाख रुपए तक कमाई होने लगती है।पर्यावरण की दृष्टि से भी इसकी खेती लाभकर है।
पानी से भोजन लेने की प्रक्रिया में एक सीप 96 लीटर पानी को जीवाणु-वीषाणु मुक्त करने की क्षमता रखता है। सीप पानी की गन्दगी को दूर करके पानी में नाइट्रोजन की मात्रा कम कर देता है और ऑक्सीजन की मात्रा आश्चर्यजनक ढंग से बढ़ा देता है। यही नहीं सीप जल को प्रदूषण मुक्त करके प्रदूषण पैदा करने वाले अवयवों को हमेशा के लिये खत्म कर देता है।
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