क्या आप जानते हैं? कारगिल युद्घ में देश की कई टॉप इंटेलीजेंस एजेंसियां भी अपना कुछ खास प्रदर्शन नहीं दिखा सकी। आंतरिक घटनाक्रम पर ध्यान देने वाली आईबी और बाहर की घटनाओं को टे्रक कर रही रॉ और आर्मी की अपनी थ्री इन्फेंटरी की इंटेलीजेंस यूनिट को पाकिस्तानी सेना के ऑपरेशन की कानों कान खबर तक नहीं हुई।
हालात कुछ इस तरह के बना दिए गए कि जून 1998 से लेकर अप्रैल 1999 तक इन सारी एजेंसियों ने एक जैसी रिपोर्ट दी कि पाकिस्तान की तरफ से अलग-अलग सीमाओं पर जेहादियों की घुसपैठ कराना कोई मुश्किल काम नहीं था। किसी भी एजेंसी ने पाकिस्तानी आर्मी की युद्घ जैसी स्थिति पर कोई इनपुट ही नहीं दिया था। इसके पीछे का कारण ये भी था कि उस समय किसी भी एजेंसी का सीमा पर कोई मजबूत नेटवर्क ही नहीं था। इसके साथ ही एलओसी के आसपास बसे गांव में वहां पर मजौद लोगों और सेना,इंटेलीजेंस यूनिट के बीच भी तनावपूर्ण रिश्ता था।
कारगिल युद्घ के दौरान आर्मी चीफ रह चुके जन.वीपी मलिक ने अपनी किताब में कुछ उक्त तथ्यों का जिक्र किया है। जन.मलिक लिखते हैं कि उस समय पाकिस्तानी मिलिट्री को ट्रेक करने का काम रॉ को सौंपा गया था। फिर एक साल तक पाक फोर्स कमांडर नॉर्दन एरिया से जुड़ी किसी प्रकार की कोई भी जानकारी नहीं मिल सकी। पाकिस्तान ने किस तरह आराम-आराम से दो अतिरिक्त बटालियन और हैवी ऑर्टिलरी गिलगिट क्षेत्र की ओर बढ़ाई।
इस बात की जानकारी भारतीय इंटेलीजेंस एजेंसियो के पास थी ही नहीं। जब आईबी से रिपोर्ट देने को कहा तो वहां से जेहादी गतिविधियों पर ध्यान देने का अलर्ट आता रहा। आईबी ने इसकी एक अन्य रिपोर्ट जून 1998 में दी। इसमें बताया गया कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में चल रहे आतंकियों के कैंप से 50-150 किलोमीटर उत्तर की ओर मतलब द्रास कारगिल के पास वाले इलाके में जेहादियों की हलचल हो सकती है।
रणनीतिक तौर पर इस रिपोर्ट का मतलब तो यही लगाया जा रहा था कि जेहादी समूह कश्मीर घाटी या द्रास कारगिल की ओर घुसपैठ कर सकते हैं। बता दें कि इस रिपोर्ट में मिलिट्री ऑपरेशन का जिक्र दूर से दूर तक नहीं था। बहुत ऊंचाई पर स्थित भारतीय चौकियों के आसपास भी क्या चल रहा था इस बात का भी कोई सही सूचना नहीं दी गई। आईबी की यह सूचना केवल राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और डीजीएमओ को ही भेजी गई। इन सारी सूचनाओं से बस यहीं पता लग सका कि जेहादी एलओसी के पार किसी भूभाग पर अपना कब्जा करने की मंशा से नहीं आते बल्कि वह हिट एंड रन की नीति को अपनाते हैं।
अप्रैल 1999 से पहले तक पाक सेना के ऑपरेशन की भनक तक नहीं…
अप्रैल 1999 में जेआईसी ने एक रिपोर्ट और दी थी। इसमें लाहौर घोषणा के बाद की स्थिति का भी जिक्र था। भारत ने जब अग्नि-2 मिसाइल का परीक्षण किया तो पाक ने भी गौरी और शाहीन मिसाइल का परीक्षण किया। वहीं इंटेलीजेंस रिपोर्ट में उक्त बातों को बताया गया जिसके बाद नई रिपोर्ट तैयार की गई। इसके बाद फिर आईबी ने एक अलग ही रिपोर्ट जारी कर दी। इस रिपोर्ट में लिखा था कि सीमा पार कुद नए आतंकवादियों का समूह तैयार हो रहा है। वो किसी समय भी घुसपैठ कर सकते हैं।
हालांकि इस रिपोर्ट में संभावित क्षेत्रों की कोई बात नहीं करी गई थी। पिछले दिनों सीमा पर हुई फायरिंग की बात तो अलर्ट में कह दी गई लेकिन उसमें आर्मी टेंशन जैसा कोई डर नहीं बताया गया था। फिर आईबी की रिपोर्ट से सूचना मिली कि जिसमें बताया कि पाकिस्तान लड़ाई कर सकता है। तैयारी कर लें। यहां पर भी कम शब्दों में अपनी बात को कहे जाने की कोशिश की। फिर जून में आईबी की रिपोट घुसपैठ के इर्दगिर्द ही चक्कर मारती रही।
ये रही असली वजह भारीतय इंटेलीजेंस एजेंसियों को सूचनाएं ना मिलने का…
दा डार्क विन्टर चेप्टर में बताया गया कि सीमा पार हमारी इंटेलीजेंस एजेेंसियों को कोई खास प्रभाव नहीं था। उनके सूत्र ऐसे नहीं थे जो हमे पाक आर्मी की तैयारियों और ऑपरेशन की जानकारी प्राप्त हो सके। पाकिस्तान में भारतीय इंटेलीजेंस एजेंसियों के वालंटियर नहीं थे। द्रास कारगिलतक पाक की दो बटालियन जा पहुंई और उनके मिलिट्री ऑपरेशन की रणनीति ये खबर भारतीय एजेंसियों को नहीं मिल पाई।
जन.वेद प्रकाश मलिक ने अपनी किताब में इस बात का भी जिक्र किय कि 3 इंफेंटरी डिवीजन की इंटेलीजेंस विंग को भी सही से सूचना नहीं मिली। उसकी जानकारी आधी अधूरी थी और तथ्य आपस में जुड़ नहीं पा रहे थे। कारगिल के बाद इस बात को महसूस किया गया कि सीमा पर जो भी स्थानीय लोग हैं और आर्मी या दूसरे सुरक्षा बलों के बीच वर्तलाप होना काफी जरूरी है।
क्योंकि कारगिल युद्घ होने से पहले इस बात पर इतना ज्यादा गौर नहीं फरमाया गया था। हालांकि लड़ाई हो जाने के बाद लगभग सारी एजेंसियों ने लोकल और वर्दी के बीच के अंतर को पाटने में जी जान लगा दी। इस रणनीति पर सीमा पर सिविल ऐक्शन प्रोग्राम का हिस्सा है।