संशोधित नागरिकता कानून और एनआरसी को लेकर देशभर में रोजाना कोई न कोई हंगामा होता रहता है। वहीं इस दौरान यूपी के कई जिलों में हिंसक प्रदर्शन हुए हैं जिसको देखते हुए सरकार ने एहतियातन इन जिलों में इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगा दी है। यूपी के अलावा असम सहित पूर्वोत्तर के कई सारे राज्यों में इंटरनेट सेवा पर रोक लगा दी गइ थी। बता दें कि इंटरनेट सेवा बंद होने से केवल आम लोगों को ही नहीं बल्कि टेलीकॉम कंपनियों को भी भारी नुकसान उठाना पड़ता है।
टेलीकॉम कंपनियों को झेलना पड़ा भारी नुकसान
दरअसल फर्जी तस्वीरों और फर्जी खबरों की रोकथाम के लिए हिंसा प्रभावित जगहों पर इंटरनेअ सेवाएं को रद्द किया गया। वहीं मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर्स के संगठन सेल्यूलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने बताया कि इंटरनेट सेवा बंद होने की वजह से प्रतिघंटे के हिसाब से तकरीबन 2.5 करोड़ रुपए का नुकसान होता है। सीओएआई के एक अधिकारी का कहना है कि इस संबंध में केंद्र को चिट्ठी भी लिखी गई है। जबकि सरकार की ओर से अब तक भी इसपर कोई जवाब नहीं आया है।
राजन मैथ्यू का कहना है कि इंटरनेट सेवा बंद करने से पहले इसकी लागत पर भी विचार किया जाना चाहिए। सीओएआई के महासचिव का ये बयान उस समय आया जब संशोधित नागरिकता कानून और एनआरसी को लेकर हिंसक प्रदर्शन के बाद यूपी के बहुत सारे जिलों में इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई। जम्मू-कश्मीर में भी सरकार ने आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी थी। सीओएआई के अधिकारियों के मुतबिक इंटरनेट बंद करने के पीछे कई और अन्य कमियां हैं।
करीब 100 बार अलग-अलग इलाकों में बंद हुआ इंटरनेट
सीओएआई के अधिकारियों का यह भी कहना है कि 8 अगस्त 2017 के गजट नोटिफिकेशन में भी इन खामियों को लिस्टेड कर दिया गया है और सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित कर लिया गया। क्योंकि बताया गया है कि आमतौर पर इंटरनेट सेवा बंद करने संबंधी नोटिफिकेशन पर सचिव स्तर के अधिकारी के सिग्नेचर नहीं होते हैं।
इसके साथ ही इंटरनेट सेवा बंद करने के आदेश की जानकारी बार-बार सीओएआई को नहीं दी जाती। वहीं महासचिव राजन मैथ्यू ने बताया कि इस साल तकरीबन 100 बार देश के अलग-अलग इलाकों में इंटरनेट सेवा को बंद किया गया है। मगर इसे नियंत्रित करने की कोशिश जरूर करनी चाहिए।