साल का पहला चंद्र ग्रहण 10 जनवरी शुक्रवार यानी कल लगेगा। 6 कुल ग्रहण इस साल लगेंगे जिसमें से चंद्र ग्रहण 4 होंगे और सूर्य ग्रहण 2 होंगे। 2020 का पहला चंद्र ग्रहण 10 जनवरी शुक्रवार को लग रहा है। भारत में भी यह चंद्र ग्रहण नजर आएगा। 4 घंटे से भी ज्यादा इस चंद्र ग्रहण की समय अवधी बताई गई है।
शुक्रवार की रात 10 बजकर 37 मिनट से यह ग्रहण शुरु होगा और 2 बजकर 42 मिनट पर यह खत्म होगा। 12 घंटे पहले ग्रहण से सूतक काल लग जाएगा। इसका मतलब यह है कि 10 जनवरी शुक्रवार की सुबह 10 बजे सभी मंदिरों के कपाट बंद हो जाएंगे।
एक खगोलीय घटना चंद्र ग्रहण की है। इसका विशेष महत्व वैज्ञानिक और ज्योतिषीय नजरिए से बहुत है। एक अनोखी खगोलीया घटना वैज्ञानिक रूप से है तो वहीं व्यक्ति के जीवन पर विशेष प्रभाव धार्मिक और ज्योतिष नजरिए से डालती है। ग्रहण को अशुभ ज्योतिष मान्यताओं में माना जाता है। चंद्र ग्रहण 10 जनवरी की रात को लगेगा। चलिए वैज्ञानिक और पौराणिक महत्व ग्रहण का जानते हैं।
वैज्ञानिक नजरिया ये कहता है चंद्र ग्रहण के लगने का
विज्ञान के मुताबिक पृथ्वी के चारों तरफ चंद्रमा घूमता है। जब पृथ्वी और चंद्रमा घूमते हैं तो एक समय पर वह ऐसी जगह पर आते हैं जहां सूर्य,पृथ्वी और चंद्रमा तीनों एक ही लाइन में हो जाते हैं। सूर्य व चंद्रमा के बीच में जब पृथ्वी घूमते-घूमते आ जाती है। पृथ्वी की ओट में पूरी तरह चंद्रमा की इस स्थिति में छिप जाता है और सूर्य की रोशनी उस पर नहीं पड़ती है जिसे चंद्र ग्रहण कहा जाता है।
ये है ग्रहण का धार्मिक महत्व
पौराणिक मान्यता में कहा गया है कि जब समुद्र मंथन चल रहा था तब देवताओं और दानवों के बीच में अमृत पान के लिए उस समय विवाद हो गया था जिसे सुलझाने के लिए मोहिनी का रूप भगवान विष्णु ने लिया। सारे देवता और दानव मोहिनी के रूप से उनके दिवाने हो गए जिसके बाद देवताओं और दानवों को अलग-अलग भगवान विष्णु ने बिठा दिया। लेकिन भगवान विष्णु की इस चाल के बारे में एक असुर को पता चला गया। देवताओं की लाइन में आकर वह असुर छल से बैठ गया और अमृत पान करने लगा।
इस दानव को ऐसा करते चंद्रमा और सूर्य ने देख लिया जो देवताओं की पंक्ति में बैठे। भगवान विष्णु को इस बात के बारे में उन्होंने बताया और उसके बाद उस दानव का सिर धड़ से भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से अलग कर दिया। लेकिन अमृत को अपने गले से उस दानव ने उतार लिया था जिसके कारण उसकी मौत नहीं हो पाई। उसके बाद राहू उसके सिर वाला भाग और केतू उसके धड़ वाला भाग के नाम से जाना गया। यही वजह है कि सूर्य और चंद्रमा को अपना शत्रु राहू और केतु मानते हैं। सूर्य और चंद्रमा का ग्रास पूर्णिमा और अमावस्या के दिन कर लेते हैं। सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण इसे कहा जाता है।
छाया ग्रह राहु और केतु को ज्योतिष में माना गया है। राहु-केतु बुरे भाव में अगर किसी की कुंडली में जाकर बैठ जाते हैं तो बहुत समस्याओं का सामना उन्हें अपने जीवन में करना होता है। इनकी ताकत का आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि सूर्य और चंद्रमा भी इनके प्रभाव से नहीं बच पाते।