भारत देश में अधिकतर लोग खेती करते हैं। उन्हें अन्नदाता कहते हैं। हालांकि सूखा भी उनकी जमीन पर आए दिन होता है और बाढ़ भी आती है। वहीं कर्ज के फांस भी उनके गले में लगातर कसती रहती है लेकिन अन्न वह फिर भी बोता है जिससे दुनिया की भूख सम्पात हो जाए। देश के किसान के लिए पानी की किल्ल्त सबसे बड़ी समस्या है। इसी बीच एक शानदार तरीका मध्यप्रदेश के एक किसान ने निकाल दिया है। दरअसल खाली ग्लूकोज की बोतलों से उसने ड्रिप सिस्टम बनाया।
ये मामला कहां का है
एक न्यूज़ रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल जिले झाबुआ का यह मामला है। दरअसल ये एक पहाड़ी क्षेत्र है। वहां के रहने वाले रमेश बारिया जो किसान हैं और इस परेशानी का उपाय उन्होंने निकाल लिया।
Indian Farmer from water deficit Jhabua district of MP has used Waste Glucose Bottles To Build Drip Irrigation System.
He bought used glucose plastic bottles for Rs 20 per kilograms and cut the upper half to create an inlet for water.#perdropmorecrop#wastetowealth pic.twitter.com/EHJTMTv6ZM— Akshay Bhorde, IFS (@AkshayBhordeIFS) July 30, 2020
ये सब्जियां लगाई
NAIP यानी राष्ट्रीय कृषि नवाचार परियोजना के कृषि वैज्ञानिकों से साल 2009-2010 में संपर्क किया। इस दौरान उन्हें अपने इलाके की सभी परेशानियां उन्होंने बताई। उसके बाद उन्हें वैज्ञानिकों ने गाइडेंस दी। उन्होंने कहा कि सब्जी की खेती सर्दी और बरसात के मौसम में छोटे से पैच में शुरू करे। उनकी जमीन यह खेती करने के लिए बिलकुल उचित थी। करेला, स्पंज लौकी उगाना उन्होंने तो यहां शुरू किया और अपनी एक छोटी नर्सरी भी बनाई।
कमी हो रही थी पानी की
दरअसल पानी की भारी कमी मानसून में देरी होने के कारण हो रही थी। फसल ऐसे में खराब होने का उन्हें दर था। इसलिए विशेषज्ञों का सुझाव फिर से बारिया ने लिया। उन्होंने कहा कि वेस्ट ग्लूकोज की पानी की बोतलों की मदद वह ले सकते हैं। एक सिंचाई तकनीक उन्होंने इससे अपनाई।
बोतलें लगाई ऐसे
ग्लूकोज की बोतलें पहले तो उन्होंने 20 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से खरीदी। उसके बाद ऊपरी आधे हिस्से को एक इनलेट बनाने के लिए काटा। इसके बाद पौधों के पास उन्हें फिर लटका दिया। पानी का प्रवाह बूंद-बूंद से इन बोतलों के जरिए पौधों में आता है।
बच्चे स्कूल जाने से पहले पानी भरते
बता दें कि सुबह स्कूल जाने से पहले उनके बच्चे इन पौधों पर रोज पानी भरते। 0.1-हेक्टेयर भूमि से 15,200 रुपये का फायदा इस तकनीक से वो सीजन में उठाने में सफल हुए। इससे पौधे भी नहीं सूखे और पानी की बर्बादी भी नहीं हुई। इस तकनीक को गांव के बाकी लोगों ने भी अपनाया। उन्होंने यूज में वेस्ट प्लास्टिक को भी लिया। जिला प्रशासन और मध्य प्रदेश सरकार के कृषि मंत्री ने रमेश बारिया की जमकर तारीफ की और उन्हें प्रमाण पत्र से सम्मानित भी किया।