आज कल के वक्त में सबसे बढ़ी परेशानी बनकर जो सामने आ रही है वो है देश में पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दाम। जिससे सिर्फ और सिर्फ रोजमर्रा चलने वाले आम लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वैसे यह कहना गलत नहीं होगा कि पिछले कई सालों से पेट्रोल और डीजल की कीमतों में काफी बड़ा इजाफा देखने को मिला है। लेकिन इससे बचने के लिए लोगों ने अब सीएनजी फ्यूल का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।
लेकिन यह देश के कुछ ही हिस्सों में मौजूद है। हाल ही में एक ऐसा ही हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है जिसे जानकार आप भी शॉक रह जाएंगे। जी हां तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद के 45 वर्षीय मेकैनिकल इंजीनियर सतीश कुमार यूज हुए पुराने प्लास्टिक को रिसायकल कर उसे फ्यूल में तब्दील कर दिया है। उन्होंने बताया की तीन प्रक्रिया में होने वाले इस पूरे प्रोसेस को प्लास्टिक पायरोलिसिस कहा जाता है।
सतीश कुमार ने सूक्ष्म,लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय के साथ पंजीकृत हाइड्रोक्सी प्राइवेट लिमिटेड के नाम की एक कंपनी की शुरूआत करी है। प्लास्टिक पिघल कर तेल बनाने वाले प्रोफेसर का कहना है कि इस प्रक्रिया से प्लास्टिक को डीजल,विमानन ईंधन और पेट्रोल में बदलने के लिए रिसायकल करने में सहायता मिलती है। महत्वपूर्ण बात यह है कि तकरीबन 500 किलोग्राम गैर-पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक 400 लीटर ईंधन का उत्पादन कर सकता है।
प्रोफेसर ने आगे बताया कि यह एक बेहद आसान तरीका है जिसमें पानी की जरूरत नहीं होती है। इसके साथ-साथ पानी का बेवजह बहना भी बच जाता है। सबसे अहम बात ये है कि इस प्रक्रिया से हवा प्रदूषित नहीं होती है। क्योंकि ये पूरा प्रोसेस एक वैक्यूम में होता है।
सतीश कुमार ने इस प्रक्रिया के बारे में और ज्यादा जानकारी देते हुए बताया कि इसमें वायु प्रदुषण भी ना के बराबर होता है। इतना ही नहीं सतीश कुमार 50 टन प्लास्टिक को पेट्रोल में बदल चुके हैं। इन्होंने ये प्रोसेस साल 2016 में शुरू किया था। बता दें कि रिसायलकल प्रक्रिया में केवल उसी प्लास्टिक को उपयोग में लिया जाता है जिसका आगे कभी इस्तेमाल हो ही नहीं सकता है।
अगर बात दैनिक प्रोडक्शन की करी जाए तो वह रोजाना 200 किलो प्लास्टिक से 200 लीटर पेट्रोल तैयार करते हैं। फिर ये पेट्रोल व्यापारियों को करीब 40 से 50 रुपए प्रति लीटर की दर से बेच देते हैं। हालांकि अभी तक इस बात का खुलासा नहीं हो पाया है कि सतीश द्घारा बनवाया जा रहा पेट्रोल आखिर वाहनों के लिए कितना सही है। ये चेक होना अभी बाकी है।