बंगाली माह भाद्र के अंतिम दिन विश्वकर्मा पूजा भाद्र संक्रांति के दिन हर साल मनाया जाता है। कन्या संक्रांति के नाम से भी इसे जाना जाता है। कन्या संक्रांति इस साल 16 तिसंबर बुधवार यानी आज मनाई जा रही है। भगवान विश्वकर्मा की पूजा विधिपूर्वक इस दिन की जाती है जिससे तरक्की रोजगार और बिजनेस को मिलती है।
मान्यता है कि देवताओं का शिल्पी भी भगवान विश्वकर्मा को कहते हैं। निर्माण और सृजन के देवता के रूप में भी वह जाने जाते हैं। संसार के पहले इंजीनियर और वास्तुकार उन्हें कहा जाता है।
ये है विश्वकर्मा पूजा का मुहूर्त
कन्या संक्रांति का क्षण 16 सितंबर के दिन सुबह 6 बजकर 53 मिनट पर है। मान्यताओं के अनुसार, कन्या राशि में सूर्य देव इस समय पर प्रवेश करते हैं। विश्वकर्मा पूजा का मुहूर्त कन्या संक्रांति के साथ ही है। राहुकाल का ध्यान पूजा के दौरान अवश्य रखें। राहुकाल दोपहर 12 बजकर 21 मिनट से 1 बजकर 53 मिनत तक विश्वकर्मा पूजा के दिन है। पूजा इस समय काल में नहीं करनी होती।
ये है विश्वकर्मा पूजा के दिन का है पंचांग
दिन: बुधवार, आश्विन मास, कृष्ण पक्ष, चतुर्दशी तिथि।
दिशाशूल: उत्तर।
विशेष: सूर्य की कन्या संक्रांति।
भद्रा: प्रात: 09:33 बजे तक।
विक्रम संवत 2077 शके 1942 दक्षिणायन, उत्तरगोल, शरद ऋतु शुद्ध आश्विन मास कृष्णपक्ष की चतुर्दशी 19 घंटे 57 मिनट तक, तत्पश्चात् अमावस्या मघा नक्षत्र 12 घंटे 21 मिनट तक, तत्पश्चात् पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र सिद्धि योग 07 घंटे 41 मिनट तक, तत्पश्चात् साध्य योग सिंह में चंद्रमा।
ये है विश्वकर्मा पूजा का महत्व
हिंदू धर्म के मुताबिक, भगवान विश्वकर्मा विद्यमान संसार के किसी भी निर्माण या सृजन कार्य में होते हैं। बिना किसी विघ्न के आपके सभी कार्य भगवान विश्वकर्मा की पूजा से पूरे होते हैं साथ ही बिगड़े काम भी बनने लगते हैं।
भगवान विश्वकर्मा कौन हैं
भगवान विश्वकर्मा वास्तुदेव और माता अंगिरसी की संतान हैं। ईष्ट देव शिल्पकारों और रचनाकारों के होते हैं। ब्रह्मा जी की मदद उन्होंने सृष्टि की रचना में की और मानचित्र पूरे संसार का बनाया था।
स्वर्ग लोक, श्रीकृष्ण की नगरी द्वारिका,सोने की लंका, पुरी मंदिर के लिए भगवान जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा की मूर्तियों,इंद्र के अस्त्र वज्र आदि भगवान विश्वकर्मा ने इन सबका निर्माण किया था। उनके महत्व के बारे में विस्तार से ऋगवेद में बताया गया है।