अगर घर को रथ कहा जाता है तो उसके दोनों पहिए पति और पत्नी होते हैं। कहते हैं कि घर बिल्कुल नहीं चल पाता है अगए एक पहिया भी सही तरीके से नहीं चलता है। शास्त्रों में कहा गया है कि एक खास महत्व पन्ति हो जीवन में देना चाहिए। ऐसे ही अर्धांगिनी पत्नि को नहीं कहते हैं। इसका मतलब होता है कि आधा अंग अर्थात पत्नि के बिना पति अधूरा होता है। पत्नी आधा अंक होती है पति का।
एक श्लोक के जरिए पत्नी के गुणों को गरुण पुराण में बताया गया है। इसमें बताया गया है कि इन गुणों वाली स्त्री अगर किसी भी पुरुष के पास होती है वह बहुत ही भाग्यशाली होता है। इस श्लोक के बारे में चलिए जानते हैं।
गरुण पुराण में बताया गया है कि- ‘सा भार्या या गृहे दक्षा सा भार्या या प्रियंवदा। सा भार्या या पतिप्राणा सा भार्या या पतिव्रता।।’ चलिए इसका अर्थ समझते हैं।
गृहे दक्षा
गृह कार्य में दक्ष जो स्त्री सभी काम घर के जैसे-भोजन बनाना, साफ-सफाई करना, घर को सजाना, कपड़े-बर्तन आदि साफ करना, बच्चों की जिम्मेदारी ठीक से निभाना, घर आए अतिथियों का मान-सम्मान करना, कम संसाधनों में ही गृहस्थी चलाना आदि कार्यों में दक्ष होती है। जिन स्त्री में ये गुण होते है उसे भरपूर प्रेम पति से मिलता है और घर में भी तरक्की होती है।
प्रियंवदा
प्रियंवदा का मतलब होता है कि मधुर हमेशा जो स्त्री बोलती है और संयमित भाषा में ही अपने बड़ों से बात करती है वह हमेशा सबकी प्रिय भी होती है।
पतिप्राणा
इसे पतिपरायणा स्त्री भी कहते हैं। इस गुण वाली स्त्री के बारे में कहा जाता है कि वह अपनी पति की सारी बातें सुनती है और पालन भी उनका करती है। इतना ही नहीं इस गुण वाली स्त्री ऐसी कोई बात नहीं करती है जिससे उसके पति के मन को चोट लगे। ऐसे गुण वाली स्त्री के लिए पति कुछ भी कर देते हैं।
पतिव्रता
इस गुण वाली स्त्री कभी भी पति के अलावा दूसरे पुरुष के बारे में मन में विचार भी नहीं लाती है। ऐसी गुणकारी पत्नी को पतिव्रता का दर्जा धर्मग्रंथों में दिया गया है। गरुड़ पुराण में कहा गया है कि पति को बल ऐसी खूबि वाली पत्नि ही देती है। साथ ही सुख इन स्त्रियों को अंत में मिलता है।
ये चार गुण जो हमने आपको बताएं हैं अगर ऐसी स्त्री जिसके पास भी होती है वह अपने आपको इंद्र से कम ना समझे। यह पुरुष बहुत ही भाग्यशाली होते हैं जिन्हें इन गुण वाली पत्नी मिलती हैं।