नई दिल्ली : जोहानिसबर्ग मे चल रही कामनवेल्थ कुश्ती चैंपियनशिप में भारतीय पहलवानों ने जमकर पदक लूटे। पहले ही दिन ग्रीको रोमन में दस स्वर्ण और इतने ही रजत पदक जीत कर हमारे पहलवानों ने देश के कुश्ती प्रेमियों को गदगद कर दिया है। फ्रीस्टाइल मुकाबलों मे भी कामयाबी का सिलसिला जारी रहा और अंततः हमारे पहलवानों ने 29 गोल्ड मेडल जीत कर तहलका मचा दिया। लेकिन ज़्यादा खुश होने की ज़रूरत नहीं है। यह प्रदर्शन देश को धोखा देने जैसा है।
कुश्तीप्रेमी अपने पहलवानों के रिकार्डतोड़ प्रदर्शन से हैरान हैं। कुछ एक अवसरों को छोड़ प्राय खाली हाथ और घोर अपमान के साथ लौटने वाले हमारे पहलवानों का ग्राफ यकायक कैसे इतना उंचा उठ गया है। अभी कुछ साप्ताह पहले भारतीय ग्रीको रोमन पहलवान वर्ल्ड चैंपियनशिप से खाली हाथ लौटे थे। ज़्यादातर एक बाउट तक नहीं जीत पाए थे। तो फिर हमारे मिट्टी के शेर दक्षिण अफ्रीका पहुंच कर कैसे दहाड़ने लगे हैं। सच्चाई यह है कि कामनवेल्थ चैंपियनशिप का स्तर हमारे राष्ट्रीय और संभवतया किसी राज्य की चैंपियनशिप से भी घटिया होता है। वर्षों से हमारे पहलवान इस आयोजन में पदक लूट कर वाह-वाह लूटते आ रहे हैं। सरकार और कुश्ती फेडरेशन अपनी-अपनी पीठ थपथपाते हैं। लेकिन कोई भी ऐसे बेमतलब आयोजन की वास्तविकता को उजागर नहीं करना चाहता।
देशवासियों के खून-पसीने की कमाई को ऐसे निरर्थक आयोजनों पर लुटाना कहां की समझदारी है। पता चला है कि अंतर्राष्ट्रीय अनुभव दिलाने के नाम पर हर भार वर्ग में दो पहलवान उतारे जाते हैं। अर्थात ग्रीको रोमन और फ्रीस्टाइल की दो-दो टीमें भाग लेती हैं। पहली टीम का खर्च सरकार द्वारा उठाया जाता है। दूसरी टीम के पहलवान अपने विभाग या अपनी जेब से खर्च उठाते हैं। लेकिन यह घाटे का सौदा कदापि नहीं है। कारण पदक जीतने पर सरकार द्वारा और विभागीय स्तर पर अच्छा खासा नकद इनाम मिलता है। यह खेल सालों से चल रहा है जोकि सिर्फ पैसे की बर्बादी है। स्वयं भाग लेने वाले पहलवान और कोच मानते हैं कि अनुभव के नाम पर यह आयोजन जीरो है और महज देश को धोखा देने जैसा है। तो फिर खेल मंत्रालय कब जागेगा। कब देश के पैसे की बर्बादी को रोका जाएगा। यह तय है कि ऐसे आयोजनों से भारतीय कुश्ती गर्त में ही जाएगी।
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