नई दिल्ली : एएफसी एशिया कप में बहरीन से हार कर भारतीय चुनौती समाप्त हो गई है। ग्रुप टाॅप करने की हुंकार भरने वाली और चार-आठ सालों में वर्ल्ड कप खेलने का दम भरने वाली भारतीय फुटबॉल रो-धोकर और गले ना उतरने वाली बयानबाज़ी कर अपनी नाकामी को दबाने की कोशिश भले ही करे लेकिन सच्चाई यह है कि भारतीय फुटबॉल में चैम्पियनों जैसा दम नहीं है। बेशक, भारत ने थाईलैंड के विरुद्ध शानदार जीत दर्ज की पर यूएई और बहरीन से हारने पर भाग्य को कोसना काफी नहीं है।
देखा जाए तो भारत को अत्यधिक आत्मविश्वास और बड़बोलापन ले डूबा। फुटबॉल की थोड़ी भी समझ रखने वाले जानते हैं कि यह एक टीम खेल है और मात्र सुनील छेत्री, संधु या झिंगन टीम की नैया पार नहीं लगा सकते। यह सही है की भारतीय खिलाड़ियों ने एक टीम के रूप मे खेलना सीख लिया है और उनकी फिटनेस बेहतर हुई है लेकिन हम यह भूल रहे हैं कि बाकी देश पहले ही हमसे सालों आगे हैं और उन्होने अत्याधुनिक फुटबॉल के गुर सीख लिए हैं।
यूएई और बहरीन ने दिखाया कि कैसे मैच जीते जाते हैं। भारतीय टीम की एक उपलब्धि यह रही कि उसने थाईलैंड को हराया वरना यह टीम कहीं से भी विश्वस्तरीय नज़र नहीं आई। भारतीय फुटबॉल टीम की नाकामी के पीछे एक बड़ा कारण कुछ अवसरवादियों और खेल की आड़ में धंधा करने वाली कंपनियों का खेल भी रहा है। जिन्हें फुटबॉल की एबीसी नहीं आती वह टीवी चैनलों पर दावा कर रहे हैं कि भारत 2022 का वर्ल्ड कप खेल सकता है।
ऐसे एक्सपर्ट्स को या तो अपनी फुटबॉल की सही जानकारी नहीं या झूठ बोल कर अपने स्वार्थ साध रहे हैं। यह ना भूलें क़ी इस टीम पर पूरे देश की उम्मीदें लगी थीं। करोड़ों खर्च किए गये, झूठे सपने दिखाए गये और नतीजा वही ज़ीरो। अर्थात अब एक बार फिर ज़ीरो से शुरू करना पड़ेगा। बेशक, आगे की डगर बहुत मुश्किल होने वाली है। चार साल बाद फिर से एएफसी कप खेलना पड़ेगा और कोई गारंटी नहीं कि कामयाबी मिल पाएगी। लेकिन तब तक शायद सुनील छेत्री जैसा भरोसे का खिलाड़ी भी जारी ना रख पाए।
अंतिम क्षणों में बहरीन से हारा भारत
(राजेंद्र सजवान)