प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण ने शनिवार को कहा कि वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) की अवधारणा में लाखों लोगों को अपनी शिकायतों को निपटाने के लिए एक मंच प्रदान करके भारतीय कानूनी परिदृश्य को बदलने की क्षमता है।उन्होंने कहा कि सभी हितधारकों के पर्याप्त सहयोग से एडीआर भारत में सामाजिक न्याय के एक उपकरण के रूप में उभर सकता है।
नर्मदा जिले के केवडिया में ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ के पास आयोजित मध्यस्थता और सूचना प्रौद्योगिकी पर दो दिवसीय राष्ट्रीय न्यायिक सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में प्रधान न्यायाधीश ने अदालतों से कहा कि वे मामले के प्रबंधन के हिस्से के रूप में सुलह और मध्यस्थता को अनिवार्य बनाने के लिए सक्रिय प्रयास करें।न्यामूर्ति रमण ने यह भी कहा कि न्याय वितरण तंत्र में लगे लोगों को नयी प्रौद्योगिकियों की पूरी समझ होनी चाहिए, जिनमें प्रक्रिया को सरल बनाने की क्षमता है। उन्होंने कहा, ‘‘लोक अदालतों, ग्राम अदालतों, मध्यस्थता मध्यस्थता केंद्रों के माध्यम से एडीआर की अवधारणा में लाखों लोगों को उनकी शिकायतों को निपटाने के लिए एक मंच प्रदान करके भारत के कानूनी परिदृश्य को बदलने की क्षमता है।’’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यह लंबित मामलों के बोझ को कम कर सकता है, न्यायिक संसाधनों और समय की बचत कर सकता है और वादियों को ‘‘विवाद समाधान प्रक्रिया और उसके परिणाम पर एक हद तक नियंत्रण’’ की अनुमति देता है।
न्यायमूर्ति रमण ने यह भी कहा कि संघर्ष हमारे जीवन का अपरिहार्य पहलू है, लेकिन उन्हें समझदारी के जरिए सुलझाया जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘‘संघर्ष से परे देखने की दूरदर्शिता होनी चाहिए। किसी विवाद से आपका रिश्ता खराब नहीं होना चाहिए। लंबे समय तक मुकदमेबाजी संसाधनों को खत्म कर सकती है और दुश्मनी पैदा कर सकती है तथा संघर्षों को एक तटस्थ वातावरण में हल किया जा सकता है, जहां दोनों पक्ष जीत की स्थिति में हों।’’
न्यायमूर्ति रमण ने अदालतों से मामले के प्रबंधन के एक हिस्से के रूप में सुलह और मध्यस्थता को अनिवार्य बनाने के लिए सक्रिय प्रयास करने को कहा। उन्होंने कहा कि वकीलों को मुकदमे के पूर्व निपटारे के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना चाहिए और मुवक्किलों को अधिक लाभ के लिए लोक अदालतों से संपर्क करने की सलाह देनी चाहिए।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि कई राज्य एक मजबूत एडीआर-अनुकूल वातावरण बनाने के लिए काम कर रहे हैं। साथ ही, उन्होंने कहा कि नए जमाने के वकीलों और कानून के छात्रों को सुलह और मध्यस्थता के क्षेत्र में आ रहे बदलाव को जानना चाहिए।
प्रौद्योगिकी के बारे में बात करते हुए, न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि न्यायाधीशों, वकीलों, कानून प्रवर्तन एजेंसियों समेत न्याय व्यवस्था तंत्र में लगे सभी लोगों को नयी तकनीकों की गहन समझ की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि क्रिप्टोकरेंसी, डेटा संरक्षण, एन्क्रिप्शन और कृत्रिम बुद्धिमता (एआई) के क्षेत्र में तेजी से विकास ने अदालतों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों को विशिष्ट मुद्दों से निपटने की जरूरत को रेखांकित किया है और न्यायिक प्रणाली द्वारा प्रौद्योगिकी को लाभकारी रूप से नियोजित किया जा सकता है।