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राष्ट्रीय खेल दिवस पर नायडू बोले- शिक्षण संस्थाओं में खेल कूद को बढ़ावा देने के लिए बनाएं आवश्यक परिवेश

उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने शिक्षण संस्थाओं और विश्वविद्यालयों में खेल कूद को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक परिवेश बनाने और हर स्तर पर खेलों के लिए जरूरी ढांचा मुहैया कराने की बात कही।

उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने रविवार को यानी आज शिक्षण संस्थाओं और विश्वविद्यालयों में खेल कूद को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक परिवेश बनाने और हर स्तर पर खेलों के लिए जरूरी ढांचा मुहैया कराने की बात कही। उन्होंने कहा कि खेल के क्षेत्र में भी भारत को एक शक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए प्रयास करना चाहिए। 
राष्ट्रीय खेल दिवस के मौके पर उप राष्ट्रपति ने फेसबुक पोस्ट में कहा कि इस साल खेल दिवस दो कारणों से विशेष उल्लेखनीय है : पहला, तोक्यो ओलंपिक खेलों में भारत ने अब तक के सर्वाधिक पदक जीते हैं, और दूसरा, खेल के क्षेत्र में देश के सर्वाधिक प्रतिष्ठित सम्मान खेल रत्न पुरस्कार का नामकरण, हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के नाम पर किया गया है।
उन्होंने लिखा, ‘‘ भारत में खेलों के इतिहास में ये दोनों ही घटनाएं मील का पत्थर हैं। तोक्यो ओलंपिक में हमारे खिलाड़ियों ने इतिहास रचा है, करोड़ों भारतीयों की आशाओं को पंख और परवाज़ दी है। देश के सर्वोच्च खेल सम्मान को ध्यान चंद जी के नाम से जोड़ा जाना, खेलों के इतिहास की इस विलक्षण प्रतिभा के प्रति हमारा सम्मान है और उस पुरस्कार की प्रतिष्ठा को और भी बढ़ाता है। आज मेजर ध्यानचंद जी की जयंती पर हॉकी के इस जादूगर की स्मृति को विनम्र नमन करता हूं। ’’
उन्होंने कहा, ‘‘ओलंपिक में भारतीय दल के प्रदर्शन ने विभिन्न खेलों में लोगों की रुचि को फिर से जगा दिया है, विशेषकर युवाओं में। खेल के क्षेत्र में भारत के लिए यह शुभ लक्षण है। कहने की जरूरत नहीं कि देश भर में खेलों को बढ़ावा देने के लिए इससे बेहतर अवसर क्या होगा।’’ नायडू ने लिखा, ‘‘हमें शिक्षण संस्थाओं और विश्विद्यालयों में खेल कूद को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक परिवेश बनाना चाहिए और हर स्तर पर खेलों के लिए जरूरी ढांचा मुहैया कराना चाहिए।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह तो भारत का सौभाग्य है कि हमारे पास विश्व की सबसे बड़ी युवा आबादी है, प्रतिभाशाली खिलाड़ी है जो कुछ कर दिखाने का जज़्बा रखते हैं। इसलिए कोई कारण नहीं कि हम विश्व स्तर पर खेल के क्षेत्र में अपनी छाप न छोड़ सकें। लेकिन जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि खेलों का क्षेत्र प्रतिस्पर्धा का क्षेत्र है, इसमें लगातार संतोषजनक प्रदर्शन बनाए रखने के लिए स्कूली स्तर से ही एक गंभीर खेल संस्कृति का निर्माण किया जाना जरूरी है।’’
उन्होंने इस पोस्ट में कहा, ‘‘जैसे कि मीडिया रिपोर्टों से ज़ाहिर है कि हाल के समय में हमारे कितने ही पदक विजेता, समाज के दुर्बल तबके से आते हैं। उनकी उपलब्धियां उनकी लगन, उनके साहस, उनके दृढ़संकल्प की कहानी बयां करती हैं। मेरा हमेशा से मानना रहा है कि भारत में किसी भी क्षेत्र में प्रतिभा की कोई कमी नहीं हैं। जरूरी है इस प्रतिभा को शुरू से ही खोज कर पहचाना जाए और उसे सही तरीके से प्रोत्साहित और प्रशिक्षित किया जाये।’’

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