केंद्र सरकार ने शुक्रवार को लोकसभा में ‘भारतीय अंटार्कटिका विधेयक, 2022’ पेश किया जिसमें अंटार्कटिका में भारत की अनुसंधान गतिविधियों तथा पर्यावरण संरक्षण के लिए विनियमन ढांचा प्रदान करने का प्रस्ताव किया गया है। पिछले दिनों केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस विधेयक को मंजूरी प्रदान की थी। विज्ञान एवं प्रौद्योगिक तथा पृथ्वी विज्ञान मंत्री जितेंद्र सिंह ने कुछ विपक्षी सदस्यों की ओर से आपत्ति जताने के बाद कहा कि, विधेयक सिर्फ अंटार्कटिका में गैरकानूनी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के मकसद से लाया गया है तथा एक पुरानी संधि के तहत यह अनिवार्य भी है। उन्होंने कहा, ‘‘मैं सहमत हूं कि अंटार्कटिका ‘नो मैन्स लैंड’ है… लेकिन अंटार्कटिका के संबंध में संधि है जिस पर 1959 में हस्ताक्षर किए गये थे। इस संधि के तहत सभी 54 सदस्य देशों के लिए अनिर्वाय है कि वे गैरकानूनी गतिविधि को लेकर कानून बनाएं।
विपक्ष ने खड़े किए सवाल
विज्ञान मंत्री के अनुसार, वहां हमारे दो अनुसंधान स्टेशन है। अगर भारतीय अनुसंधान स्टेशन के क्षेत्र में कोई गैरकानूनी गतिविधि होती है तो उससे कैसे निपटा जाएगा? ऐसे में कानून की जरूरत होगी। इससे पहले, विधेयक पेश किए जाने का विरोध करते हुए कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने दावा किया कि, इस विधेयक के मसौदे में त्रुटियां हैं। उन्होंने कहा, यह विधेयक भारतीय नागरिकों और विदेशी नागरिकों दोनों पर लागू होता है। भारतीय कानून किसी विदेशी नागरिक पर कैसे लागू होगा? इस संसद से पारित विधेयक का दायरा देश से बाहर कैसे हो सकता है? चौधरी ने कहा कि इस विधेयक को किसी प्रवर या संयुक्त समिति के पास भेजी जाए ताकि इस विधेयक की गहन छानबीन हो सके। चौधरी के अलावा तृणमूल कांग्रेस के सौगत रॉय ने कहा, मैं जानना चाहता हूं कि अंटार्कटिका पर हमारी सरकार का अधिकार कैसे है? क्या अंटार्कटिका में नौकरशाही पहुंचा देंगे? जो क्षेत्र हमारी भौगोलिक परिधि में नहीं है, वहां अपना कानून कैसे लागू होगा। उन्होंने कहा, विधेयक को स्थायी समिति के पास भेजा जाए।
वर्ष 1981 में शुरू हुआ था भारत का अंटार्कटिका कार्यक्रम
उल्लेखनीय है कि पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने भारतीय अंटार्कटिका विधेयक का मसौदा तैयार किया है । इसके माध्यम से उम्मीद की जा रही है कि भारत अंटार्कटिका संधि 1959, अंटार्कटिका जलीय जीवन संसाधन संरक्षण संधि 1982 और पर्यावरण संरक्षण पर अंटार्कटिका संधि प्रोटोकाल 1998 के तहत अपने दायित्वों को पूरा कर पाएगा । भारत का अंटार्कटिका कार्यक्रम 1981 में शुरू हुआ था और अब तक उसने 40 वैज्ञानिक अभियानों को पूरा किया है। अंटार्कटिका में भारत के तीन स्थायी शिविर हैं जिनके नाम दक्षिण गंगोत्री (1983), मैत्री (1988) और भारती (2012) हैं । अभी मैत्री और भारती पूरी तरह से काम कर रहे हैं। भारत ने मैत्री के स्थान पर एक अन्य अनुसंधान सुविधा केंद्र स्थापित करने की योजना बनायी है। हाल ही में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने संसद की एक समिति को बताया था कि मैत्री के स्थान पर एक अन्य केंद्र की तत्काल जरूरत है।
विपक्ष ने खड़े किए सवाल
विज्ञान मंत्री के अनुसार, वहां हमारे दो अनुसंधान स्टेशन है। अगर भारतीय अनुसंधान स्टेशन के क्षेत्र में कोई गैरकानूनी गतिविधि होती है तो उससे कैसे निपटा जाएगा? ऐसे में कानून की जरूरत होगी। इससे पहले, विधेयक पेश किए जाने का विरोध करते हुए कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने दावा किया कि, इस विधेयक के मसौदे में त्रुटियां हैं। उन्होंने कहा, यह विधेयक भारतीय नागरिकों और विदेशी नागरिकों दोनों पर लागू होता है। भारतीय कानून किसी विदेशी नागरिक पर कैसे लागू होगा? इस संसद से पारित विधेयक का दायरा देश से बाहर कैसे हो सकता है? चौधरी ने कहा कि इस विधेयक को किसी प्रवर या संयुक्त समिति के पास भेजी जाए ताकि इस विधेयक की गहन छानबीन हो सके। चौधरी के अलावा तृणमूल कांग्रेस के सौगत रॉय ने कहा, मैं जानना चाहता हूं कि अंटार्कटिका पर हमारी सरकार का अधिकार कैसे है? क्या अंटार्कटिका में नौकरशाही पहुंचा देंगे? जो क्षेत्र हमारी भौगोलिक परिधि में नहीं है, वहां अपना कानून कैसे लागू होगा। उन्होंने कहा, विधेयक को स्थायी समिति के पास भेजा जाए।
वर्ष 1981 में शुरू हुआ था भारत का अंटार्कटिका कार्यक्रम
उल्लेखनीय है कि पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने भारतीय अंटार्कटिका विधेयक का मसौदा तैयार किया है । इसके माध्यम से उम्मीद की जा रही है कि भारत अंटार्कटिका संधि 1959, अंटार्कटिका जलीय जीवन संसाधन संरक्षण संधि 1982 और पर्यावरण संरक्षण पर अंटार्कटिका संधि प्रोटोकाल 1998 के तहत अपने दायित्वों को पूरा कर पाएगा । भारत का अंटार्कटिका कार्यक्रम 1981 में शुरू हुआ था और अब तक उसने 40 वैज्ञानिक अभियानों को पूरा किया है। अंटार्कटिका में भारत के तीन स्थायी शिविर हैं जिनके नाम दक्षिण गंगोत्री (1983), मैत्री (1988) और भारती (2012) हैं । अभी मैत्री और भारती पूरी तरह से काम कर रहे हैं। भारत ने मैत्री के स्थान पर एक अन्य अनुसंधान सुविधा केंद्र स्थापित करने की योजना बनायी है। हाल ही में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने संसद की एक समिति को बताया था कि मैत्री के स्थान पर एक अन्य केंद्र की तत्काल जरूरत है।