उत्तर प्रदेश की सियासत के धुरंधर मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद धीरे-धीरे सभी जिम्मेदारियां उनके बड़े बेटे अखिलेश यादव के कंधे पर आने लगी है। अखिलेश यादव को सपा की कमान पूरी तरह से संभालनी है। उनके सामने कई चुनौतियां है, जिसे उन्हें पार करना है। लेकिन, पार्टी को संभालना सबसे अहम चुनौतियों में से एक है।
अखिलेश के सामने कई चुनौतियां
एक रिपोर्ट के अनुसार अखिलेश के सामने यादव परिवार को एकजुट रखने के साथ-साथ सपा के सियासी आधार और मुलायम के एम-वाई समीकरण को अपने कण्ट्रोल में रखने की बड़ी जिम्मेदारी है। अखिलेश को अभी कुछ दिन पहले तीसरी बार पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया है। अखिलेश के सामने आगे ऐसी कई चुनौतियां आने वाली है, जिसे नेताजी ने बड़े बखूबी से संभाल रखा था। अब देखना ये है कि अखिलेश यादव इन जिम्मेदारियों को कैसे निभाते है।
परिवार को साथ रखना होगा कठिन
बता दें, अखिलेश के सामने सबसे पहली बड़ी जिम्मेदारी है कि वो परिवार को कैसे एकजुट रखते है। क्योंकि परिवार के दर्जनभर सदस्य राजनीति से जुड़े हुए है। कुछ की राहें अलग है, जिस वजह से उनलोगों के बीच तकरार और मनमुटाव होते रहता है। जब तक नेताजी थे सभी एक धागे में बंधे थे। अब वो नहीं है तो सभी आजाद है। सबसे पहले बात शिवपाल यादव से करे तो वो अखिलेश के चाचा जरूर है, लेकिन अखिलेश उन्हें सियासी तौर पर साथ लेकर चलने के लिए राजी नहीं है, जबकि चाचा के साथ उनके पारिवारिक रिश्ते अच्छे है।
एम-वाई समीकरण को साथ लेकर चलना मुश्किल
वही, अखिलेश यादव के सामने एम-वाई समीकरण को साथ लेकर चलने की जिम्मेदारी भी है। क्योंकि उनके इस वोट बैंक में बसपा से लेकर AIMIM और कांग्रेस सेंध मार चुकी है। मुलायम सिंह यादव जब तक जीवित थे, तब तक उन्होंने
अपनी छवि मुसलमानों के बीच सबसे बड़े नेता की बनाए रखी थी। यूपी की राजनीति में कई मुस्लिम नेता सांसद और विधायक हैं लेकिन मुसलमानों के बीच मुलायम सिंह को लेकर जो विश्वास था वो किसी भी नेता को आज तक हासिल नहीं हो पाया है। जिस वजह से अब अखिलेश के सामने ये चुनौती है की वो अपने इस वोट बैंक को बचा के रखे। नहीं तो भविष्य के चुनावों में उन्हें नुकसान झेलना पड़ सकता है।