उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव की तिथि घोषित उत्तर प्रदेश में दो चरणों में होगा चुनाव राज्य चुनाव आयुक्त मनोज कुमार ने प्रथम चरण चार मई तथा दूसरा चरण 11 मई को जबकि 13 मई को मत गणना होगी।
760 नगरीय निकाय चुनाव के अन्तर्गत कुल 14,684 पद
कुमार ने बताया, राज्य के 760 नगरीय निकाय चुनाव के अन्तर्गत कुल 14,684 पदों पर चुनाव होंगे।उन्होंने बताया कि इसमें 17 महापौर, 1420 पार्षद, नगर पालिका परिषदों के 199 अध्यक्ष, नगर पालिका परिषदों के 5327 सदस्य, नगर पंचायतों के 544 अध्यक्ष और नगर पंचायतों के 7178 सदस्यों के निर्वाचन के लिये चुनाव होगा।इसके पहले राज्य निर्वाचन आयुक्त ने तीन अप्रैल को जारी एक बयान में कहा था कि ‘प्रदेश सरकार द्वारा आरक्षण की अंतिम सूचना प्राप्त होने के बाद प्रदेश के नगरीय निकाय सामान्य निर्वाचन-2023 की अधिसूचना जारी कर दी जाएगी।’आयोग द्वारा निर्वाचन की अधिसूचना जारी करने से पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने रविवार को नगर निगमों के महापौर, नगर परिषद और नगर पंचायतों के अध्यक्षों के लिए अंतिम आरक्षण सूची जारी की।अंतिम अधिसूचना के अनुसार, आगरा के महापौर सीट अनुसूचित जाति (महिला), झांसी की सीट अनुसूचित जाति(एससी), शाहजहांपुर और फिरोजाबाद की सीट ओबीसी (महिला), सहारनपुर और मेरठ की सीट ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग), लखनऊ, कानपुर और गाजियाबाद महिलाओं के लिए आरक्षित की गई है।वाराणसी, प्रयागराज, अलीगढ़, बरेली, मुरादाबाद, गोरखपुर, अयोध्या, मथुरा-वृंदावन की आठ महापौर सीटें अनारक्षित होंगी।
17 नगर निगम, 199 नगर पालिका परिषद और 544 नगर पंचायत
राज्य में 760 नगर निकायों के लिए जिसमें 17 नगर निगम की 199 नगर पालिका परिषद की और 544 नगर पंचायतों की आरक्षण की अधिसूचना जारी कर दी गयी है।उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने 27 मार्च को उत्तर प्रदेश में शहरी स्थानीय निकाय चुनाव कराने का रास्ता साफ कर दिया और राज्य निर्वाचन आयोग को अन्य पिछड़ा वर्ग कोटे के साथ दो दिन के भीतर इस संबंध में अधिसूचना जारी करने की अनुमति दे दी थी।इससे पहले, राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के 27 दिसंबर, 2022 के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया था।
न्यायालय ने मसौदा अधिसूचना को रद्द करने में गलती की
अपील में कहा गया था कि उच्च न्यायालय पिछले साल पांच दिसंबर को जारी मसौदा अधिसूचना को रद्द नहीं कर सकता, जिसके तहत शहरी निकाय चुनावों में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और महिलाओं के अलावा ओबीसी के लिए सीट आरक्षण प्रदान किया गया था।इसमें कहा गया था कि ओबीसी संवैधानिक रूप से संरक्षित एक वर्ग है और उच्च न्यायालय ने मसौदा अधिसूचना को रद्द करने में गलती की है।उच्च न्यायालय के आदेश के बाद, उत्तर प्रदेश सरकार ने शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी को आरक्षण प्रदान करने के लिए सभी मुद्दों पर विचार करने के वास्ते पांच सदस्यीय आयोग नियुक्त किया था।