जनसंख्या नियंत्रण को लेकर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने ड्राफ्ट पेश किया है। इस ड्राफ का जहां कई लोग और संगठन समर्थन कर रहे है वहीं इसका विरोध भी बराबर हो रहा है। प्रसिद्ध इस्लामिक मदरसा दारुल उलूम देवबंद ने भी इस मसौदे की आलोचना करते हुए कहा है कि इससे समाज के हर वर्ग के हितों को चोट पहुंचेगी और यह मानवाधिकारों के खिलाफ है।
मदरसा के कुलपति, अबुल कासिम नोमानी ने कहा, “यह नीति समाज के हर वर्ग के खिलाफ है। किस तरह की नीति उन परिवारों को बुनियादी सुविधाओं से वंचित करती है जिनके दो से अधिक बच्चे हैं? यह मानवाधिकारों के खिलाफ है।” उन्होंने कहा कि मसौदे के अनुसार, जिसके दो से अधिक बच्चे हैं, वह स्थानीय निकाय चुनाव नहीं लड़ पाएगा। उसे सरकारी नौकरियों में पदोन्नति नहीं मिलेगी और उसे कोई सरकारी सब्सिडी नहीं मिलेगी।
यह पूछे जाने पर कि क्या मदरसा सरकार से फैसले पर पुनर्विचार करने की अपील करेगा, प्रवक्ता अशरफ उस्मानी ने कहा, “हम कौन होते हैं अपील करने वाले? लेकिन हम कह सकते हैं कि यह सही नहीं है। उदाहरण के लिए, एक आदमी के तीन बच्चे हैं। अब क्या उन बच्चों की गलती है, उन्हें बुनियादी सुविधाओं से क्यों वंचित किया जा रहा है? यह न्याय नहीं है।”
केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान ने कहा, “इस तरह के बयान देने के लिए दारुल उलूम की कोई आवश्यकता नहीं थी। धर्म को इसमें क्यों घसीटा जा रहा है? हमारे पास दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी है और हम अभी भी बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। यह सही समय है। अब इस पर कार्रवाई करने के लिए।”
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने जहां जनसंख्या मसौदा विधेयक का समर्थन किया है, वहीं विहिप ने इस पर आपत्ति जताई है। राज्य विधि आयोग को लिखे अपने पत्र में, इसने कहा कि एक बच्चे की नीति के मानदंड से विभिन्न समुदायों के बीच असंतुलन और बढ़ने की संभावना है।