अयोध्या की बाबरी मस्जिद के बाद अब वाराणसी की प्रसिद्ध ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर बवाल मचा हुआ है, यह विवाद उस वक्त शुरू हुआ जब एक याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि मस्जिद का निर्माण मुगल बादशाह औरंगजेब ने 16वीं शताब्दी में एक मंदिर को तोड़कर इस मस्जिद का निर्माण करवाया था। याचिकाकर्ता ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा परिसर के विस्तृत सर्वे की मांग की।
16वीं शताब्दी में मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी मस्जिद?
इस सर्वे को लेकर दोनों धर्मों की तरफ से कड़ी प्रतिक्रिया मिली, हिंदू पक्ष इस सर्वे का समर्थन कर रहे थे तो वहीं मुस्लिम पक्ष के लोग इसकी खिलाफत में उतरे। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने 13 मई 2022 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी में ज्ञानवापी-शृंगार गौरी परिसर के सर्वे पर यथास्थिति का अंतरिम आदेश देने से इनकार कर दिया और कहा कि सर्वे को एक वीडियो में रिकॉर्ड किया जाएगा।
ज्ञानवापी मस्जिद का विवादों से रहा पुराना नाता
बता दें कि यह पहली बार नहीं है जब ज्ञानवापी मस्जिद को विवादों का सामना करना पड़ा है, दरअसल मस्जिद 1194 से बहस का केंद्र रही है। अदालत के दस्तावेजों के मुताबिक 1936 में ज्ञानवापी मस्जिद की वैधता का पता लगाने के लिए एक परीक्षण में प्रोफेसर अल्टेकर की गवाही का उल्लेख मिलता है। वहीं 14 मई 1937 को बनारस के इतिहासकार प्रोफेसर परमात्मा शरण ने औरंगजेब के समय के इतिहासकार द्वारा लिखी गई ‘मा असिरे आलम गिरी’ के कुछ हिस्से पेश किए, जिसमें कहा गया था कि 16 वीं शताब्दी में बनी ज्ञानवापी मस्जिद असल में एक मंदिर है।
16वीं शताब्दी में मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी मस्जिद?
इस सर्वे को लेकर दोनों धर्मों की तरफ से कड़ी प्रतिक्रिया मिली, हिंदू पक्ष इस सर्वे का समर्थन कर रहे थे तो वहीं मुस्लिम पक्ष के लोग इसकी खिलाफत में उतरे। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने 13 मई 2022 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी में ज्ञानवापी-शृंगार गौरी परिसर के सर्वे पर यथास्थिति का अंतरिम आदेश देने से इनकार कर दिया और कहा कि सर्वे को एक वीडियो में रिकॉर्ड किया जाएगा।
ज्ञानवापी मस्जिद का विवादों से रहा पुराना नाता
बता दें कि यह पहली बार नहीं है जब ज्ञानवापी मस्जिद को विवादों का सामना करना पड़ा है, दरअसल मस्जिद 1194 से बहस का केंद्र रही है। अदालत के दस्तावेजों के मुताबिक 1936 में ज्ञानवापी मस्जिद की वैधता का पता लगाने के लिए एक परीक्षण में प्रोफेसर अल्टेकर की गवाही का उल्लेख मिलता है। वहीं 14 मई 1937 को बनारस के इतिहासकार प्रोफेसर परमात्मा शरण ने औरंगजेब के समय के इतिहासकार द्वारा लिखी गई ‘मा असिरे आलम गिरी’ के कुछ हिस्से पेश किए, जिसमें कहा गया था कि 16 वीं शताब्दी में बनी ज्ञानवापी मस्जिद असल में एक मंदिर है।
जानें किन तथ्यों का इस्तेमाल कर रहे हैं विजय शंकर रस्तोगी
हिंदू पक्ष के वकील विजय शंकर रस्तोगी ने कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 57 (13) के तहत सामान्य इतिहास की किताबों में बताए गए ऐतिहासिक तथ्य को साक्ष्य के रूप में मान्यता दी जाती है। इस कारण अल्टेकर और चीनी यात्री ह्वेनसांग के ऐतिहासिक खाते जो भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 के तहत पंजीकृत किये गए हैं, वह एक मंदिर और सौ फीट लंबे शिव लिंग के बारे में बताते हैं।
ज्ञानवापी मस्जिद के विवाद से जुड़े अहम घटनाक्रम
हिंदू पक्ष के वकील विजय शंकर रस्तोगी ने कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 57 (13) के तहत सामान्य इतिहास की किताबों में बताए गए ऐतिहासिक तथ्य को साक्ष्य के रूप में मान्यता दी जाती है। इस कारण अल्टेकर और चीनी यात्री ह्वेनसांग के ऐतिहासिक खाते जो भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 के तहत पंजीकृत किये गए हैं, वह एक मंदिर और सौ फीट लंबे शिव लिंग के बारे में बताते हैं।
ज्ञानवापी मस्जिद के विवाद से जुड़े अहम घटनाक्रम
- बता दें कि 1936 में पूरे ज्ञानवापी परिसर में नमाज अदा करने के अधिकार के लिए ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जिला अदालत में मुकदमा दायर किया गया था। जिसमें मुकदमा करने वालों की ओर से सात और ब्रिटिश सरकार की ओर से 15 गवाह पेश किए गए। 15 अगस्त 1937 को ज्ञानवापी मस्जिद में नमाज पढ़ने का अधिकार स्पष्ट रूप से यह कहते हुए दिया गया था कि ज्ञानवापी परिसर में कहीं और नमाज नहीं पढ़ी जाएगी।
- 10 अप्रैल 1942 को निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए हाई कोर्ट ने अपील खारिज कर दी। 15 अक्टूबर 1991 को पंडित सोमनाथ व्यास, डॉ रामरंग शर्मा और अन्य ने ज्ञानवापी में एक नए मंदिर के निर्माण और पूजा के अधिकार के लिए वाराणसी की अदालत में मुकदमा दायर किया। इस आदेश के खिलाफ 1998 में हाई कोर्ट में अंजुमन इनज़ानिया मस्जिद और यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड लखनऊ की ओर से दो याचिकाएं दायर की गई थीं।
- 7 मार्च 2000 को पंडित सोमनाथ व्यास का निधन हो गया, 11 अक्टूबर 2018 को जिला सरकार के पूर्व अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी को इस मामले में एक वादी के रूप में नियुक्त किया गया था। 8 अप्रैल 2021 को पुरातत्व सर्वे करने का आदेश जारी किया गया था। ज्ञानवापी सर्वे 14 अप्रैल 2022 यानी शनिवार से शुरू हुआ था और तीन दिन तक चला जिसके आखिरी दिन पर नंदी के सामने बने कुएं में शिवलिंग मिलने का दावा किया गया है।
- हिन्दू पक्ष की ओर से वजू खाने में 3 फीट ऊंचा और व्यास 12 फीट 8 इंच का शिवलिंग मिलने का दावा किया जा रहा है तो दूसरी तरफ मुस्लिम पक्ष का कहना है कि वजू खाने में ऐसी कोई शिवलिंग नहीं मिली है। मुस्लिम पक्ष के मुताबिक वह कोई शिवलिंग नहीं बल्कि एक फव्वारा है, इस मामले में सभी के अपने-अपने दावे हैं। इस बीच सोशल मीडिया पर वजू खाने का एक पुराना वीडियों बहुत वायरल हो रहा है, जिसमें कुएं के अंदर खंडित शिवलिंग जैसे आकार की चीज को देखा जा सकता है। अब देखना यह है कि कुएं के अंदर सच में शिवलिंग है या महज एक फव्वारा है।