पिछले सप्ताह लगभग 540 किलोमीटर की दूरी पर 24 घंटे के भीतर एक जैसी समान घटनाएं घटित हुईं। हाथरस में कथित रूप से दुष्कर्म और मारपीट के बाद एक दलित लड़की की इलाज के दौरान मौत हो गई और बलरामपुर जिले में भी एक दलित लड़की के साथ बेरहमी के साथ दुष्कर्म किया गया और उसकी भी मौत हो गई।
हाथरस राष्ट्रीय शर्म और बलरामपुर में कोई कवरेज नहीं
दोनों ही मामलों में, आरोपियों को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया और पुलिस ने रात में ही मृत लड़कियों का अंतिम संस्कार करवाया। हाथरस राष्ट्रीय शर्म की कहानी बन गया है, जबकि बलरामपुर की घटना को ज्यादा मीडिया कवरेज नहीं मिला।
विपक्ष के राजनीतिक दलों ने भी बलरामपुर की घटना को नजरअंदाज किया, जहां 22 वर्षीय बीकॉम की छात्रा के साथ दुष्कर्म किया गया, नशा/जहर दिया गया और उसकी पीठ और पैर टूट गए थे, और इसी हालत में रिक्शा से उसे उसके घर भेज दिया गया था।
बलरामपुर की घटना को विपक्ष द्वारा ज्यादा न उछाले जाने का कारण हालांकि जाहिर हो गया है। जिन दो आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है, वे मुस्लिम हैं – शाहिद और साहिल – और गैर-भाजपा दल बलरामपुर की घटना को उछालकर मुसलमानों के बीच अपना जनाधार नहीं खोना चाहते।
कांग्रेस नेताओं ने सोमवार को बलरामपुर पीड़िता के परिवार से मुलाकात की, लेकिन उनके बड़े नेताओं राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा को ऐसा करने का समय नहीं मिला। सपा के एक प्रतिनिधिमंडल ने भी पीड़ित परिवार से मुलाकात की, लेकिन घटना के बारे में ज्यादा हो-हल्ला नहीं मचाया।
सियासी मुद्दा बनाम लव जेहाद
भाजपा, हालांकि लोगों का ध्यान हाथरस से हटाकर बलरामपुर की ओर ले जाना चाहती थी और इसके कारण स्पष्ट थे।आरोपी मुस्लिम हैं और इस घटना पर ‘लव जिहाद’ की कहानी बुनी जा सकती है। यही वजह है कि इस घटना पर हो-हल्ला कर योगी आदित्यनाथ सरकार को ‘लव जिहाद’ के खिलाफ कानून लाने के लिए मौका मिल गया है, जिसकी योजना पहले से ही बनाई जा रही थी।
अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) अवनीश अवस्थी और एडीजी (कानून-व्यवस्था) प्रशांत कुमार सहित दो वरिष्ठ अधिकारियों ने पीड़ित परिवार से मिलने के लिए रविवार को बलरामपुर का दौरा किया, लेकिन यात्रा को खास मीडिया कवरेज नहीं मिला।
दिलचस्प बात यह है कि सरकार ने बलरामपुर में पीड़ित परिवार के लिए मुआवजे की घोषणा नहीं की। सूत्रों का दावा है कि इसका उद्देश्य परिवार को उकसाना था, ताकि हाथरस से सबका ध्यान बंटकर बलरामपुर की ओर चला जाए। हाथरस में, पीड़ित परिवार को मुआवजे के रूप में 25 लाख रुपये दिए गए और परिवार के एक सदस्य के लिए नौकरी और घर का वादा किया गया।
क्या अनदेखी के पीछे टीआरपी है वजह
दिलचस्प बात यह है कि लगभग समूचे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी बलरामपुर की घटना को अनदेखी कर रहा है, क्योंकि बलरामपुर और दिल्ली के बीच की दूरी 720 किलोमीटर है और हाथरस, किसी भी मामले में, पहले से ही टीआरपी बढ़ाने के लिए कोई न कोई मौका दे रहा है। एक समाचार चैनल की टीम बलरामपुर गई थी, लेकिन उसे पीड़िता के परिवार को यह बयान दिलवाने के लिए कहा गया कि आरोपियों के आतंकवादी समूह के साथ संबंध हैं।
बलरामपुर के एसपी देव रंजन वर्मा ने 34 सेकंड के एक वीडियो के बाद घटना की जांच के आदेश दिए हैं, जिसमें ग्रामीणों को टीवी पत्रकारों को घेरते और उनसे पूछताछ करते हुए देखा गया, जो वायरल हो गया।
क्या है स्थानीय निवासियों की राय
निवासियों को यह कहते हुए सुना गया, “आपको किसी झूठी खबर को फैलाने और सरकार के खिलाफ प्रचार करने की जरूरत नहीं है।”आजमगढ़ और बुलंदशहर में भी इस तरह की घटनाओं की अनदेखी की गई। नाम जाहिर न करने की शर्त पर एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि ऐसी घटनाओं ने ‘मानवीय कोण के बजाय व्यावसायिक कोण’ हासिल कर लिया है।
उन्होंने कहा कि अगर आप मीडिया का ध्यान आकर्षित कर लेते हैं तो सरकार मुआवजे और अन्य प्रस्तावों के साथ पीड़ित पक्ष को शांत करने के लिए तुरंत तैयार हो जाएगी, अन्यथा आपको यूं ही छोड़ दिया जाएगा। कोई सुध नहीं ली जाएगी।
उन्होंने सवालिया लहजे में कहा, “हाथरस और बलरामपुर में हुई घटनाएं समान रूप से क्रूर और निंदनीय हैं, लेकिन एक को अटेंशन और मुआवजा मिला, जबकि दूसरे को नहीं। कोई इन दोहरे मानकों को स्पष्ट कैसे करेगा?”एक ऐसा सवाल जो कई लोग पूछ रहे हैं, लेकिन कोई जवाब नहीं दे रहा है।
Source : IANS