उत्तर प्रदेश विधानसभा में गुरुवार को पिछड़ों और दलितों को आरक्षण का लाभ न दिए जाने का मुद्दा गूंजा। विपक्ष ने सरकार पर आरोप लगाया कि राज्य सरकार जानबूझकर आरक्षण की व्यवस्था खत्म करने का प्रयास कर रही है। इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस, बसपा और सपा ने सदन से बहिर्गमन किया।
नेता प्रतिपक्ष राम गोविंद चौधरी ने कहा कि उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग द्वारा सहायक आचार्य के पद के लिए विज्ञापन निकाला गया और परीक्षा के बाद सामान्य वर्ग के छात्रों, जिनके अंक कम थे, उन्हें इंटरव्यू में शामिल कर लिया गया, जबकि पिछड़े और अनुसूचित जाति के छात्र, जिनके अंक कम आए थे, उन्हें इंटरव्यू में शामिल नहीं किया गया।
उन्होंने कहा, ‘हम किसी वर्ग का विरोध नहीं कर रहे हैं, लेकिन संविधान में जिनको आरक्षण का लाभ देने का अधिकार मिला हुआ है, उसके बाद भी राज्य सरकार साजिश के तहत पिछड़ों और दलितों को आरक्षण का लाभ नहीं दे रही है। उत्तर प्रदेश में जब से यह सरकार आई है तब से लगातार आरक्षण की व्यवस्था को खत्म करने के लिए काम किया जा रहा है।’
संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना ने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि प्रदेश सरकार संवैधानिक व्यवस्था को लागू करने के लिए कोई कोताही नहीं कर रही है और न ही सरकार की ऐसी कोई मंशा है। 27 प्रतिशत आरक्षण पिछड़ों को देने के लिए सरकार कृत संकल्पित है। बिना किसी छेड़छाड़ के यह व्यवस्था लागू की जा रही है। उन्होंने कहा कि 2008-09 में जो लोग यहां बैठे थे, उन्होंने इसे लागू करते समय यह नहीं सोचा कि इसके आगे क्या परिणाम होंगे।
कांग्रेस के अजय कुमार लल्लू ने कहा कि सरकार पिछड़ों और दलितों की आवाज को दबाना चाहती है, इसलिए भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा रहा है। यह कहते हुए कांग्रेस के सदस्यों ने सदन से वाकआउट किया। सपा सदस्यों ने भी सरकार पर आरोप लगाया कि सरकार आरक्षण का लाभ नहीं देना चाहती। इसके बाद पहले सपा और फिर बसपा के सदस्य सदन से निकल गए।