हत्या के जुर्म में देहरादून जेल में उम्र कैद की सजा भुगत रहे उत्तर प्रदेश के नेता डीपी यादव की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को संज्ञान लेते हुए केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जवाब मांगा है। हालांकि, डीपी यादव की जमानत याचिका का उत्तर प्रदेश सरकार ने विरोध किया है। डीपी यादव मेडिकल आधार पर जमानत चाहते हैं।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने इस मामले की वीडियो कांफ्रेन्सिंग के माध्यम से सुनवाई करते हुए सीबीआई को नोटिस जारी किया। पीठ ने जांच ब्यूरो से अगले हफ्ते तक इस याचिका पर जवाब मांगा है।
डीपी यादव की ओर से पेश अधिवक्ता विक्रम चौधरी ने कहा कि उनके मुवक्किल को इससे पहले गाजियाबाद स्थित यशोदा सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल में रीढ़ की हड्डी की सर्जरी कराने के लिए अंतरिम जमानत मिली थी और बाद में उसने कोर्ट के आदेशानुसार समर्पण कर दिया था।
उन्होंने कहा कि यादव की नई जमानत याचिका उनके आपरेशन के बाद से हो रही कुछ परेशानियों के निदान के संबंध में हैं। उन्होंने कहा कि जेल अधिकारियों ने भी एम्स में इलाज कराने का सुझाव दिया है। पीठ ने कहा कि वह इस मामले में पहले सीबीआई को सुनना चाहेगी।
पीठ ने इसके साथ ही जांच ब्यूरो को नोटिस जारी किया। सुप्रीम कोर्ट ने 23 अक्टूबर, 2018 को यादव को समर्पण करने और देहरादून जेल में उम्र कैद की सजा की शेष अवधि गुजारने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने गाजियाबाद स्थित अस्पताल की मेडिकल रिपोर्ट का संज्ञान लिया था जिसमें कहा गया था कि यादव की रीढ़ की हड्डी का 19 अक्टूबर को आपरेशन किया गया था और उन्हें तीन नवंबर, 2018 तक अस्पताल से छुट्टी मिलने की संभावना है।
इससे पहले, उत्तराखंड हाई कोर्ट ने डीपी यादव की जमानत याचिका 14 जून, 2018 को रद्द कर दी थी। गाजियाबाद के दादरी इलाके से विधायक महेन्द्र सिंह भाटी की हत्या मामले में डीपी यादव को 2015 में उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी। महेन्द्र सिंह भाटी को दिसंबर 1992 को दादरी रेलवे क्रासिंग पर गोली मार दी गयी थी।