सुप्रीम कोर्ट को मंगलवार को बताया गया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने बिना कारण बताए 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे से जुड़े सीआरपीसी की धारा 321 के तहत 77 मामले वापस ले लिए हैं, जिनका संबंध ऐसे अपराधों से हैं जिनमें उम्रकैद की सजा हो सकती है। प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की बेंच वकील अश्वनी उपाध्याय द्वारा दायर की याचिका पर सुनवाई करने वाली है। जिसमें निर्वाचित प्रतिनिधियों के खिलाफ दर्ज मामलों का त्वरित निस्तारण करने का अनुरोध किया गया है।
इस मामले में न्यायमित्र नियुक्त किए गए वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने वकील स्नेहा कलिता के मार्फत दाखिल की गई अपनी रिपोर्ट में कहा है कि राज्य सरकार ने बताया कि 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे के संबंध में मेरठ जोन के पांच जिलों में 6,869 आरोपियों के विरूद्ध 510 मामले दर्ज किए गए।
हंसारिया ने कहा, ‘‘510 मामलों में से 175 में आरोपपत्र दाखिल किए गए, 165 मामलों में अंतिम रिपोर्ट जमा की गई, 175 हटा दिए गए।उसके बाद 77 मामले राज्य सरकार ने सीआरपीसी की धारा 321 के तहत वापस ले लिए। सरकारी ओदश में सीआरपीसी की धारा 321 के तहत मामले को वापस लेने का कोई कारण भी नहीं बताया गया। उसमें बस इतना कहा गया है कि प्रशासन ने पूरा विचार करने के बाद खास मामले को वापस लेने का फैसला किया है।’’
उन्होंने कहा कि उनमें से कई मामलों का संबंध आईपीसी की धारा 397 के तहत डकैती जैसे अपराधों से है जिनमें उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है। हंसारिया ने कहा कि 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे से जुड़े इन 77 मामलों की सीआरपीसी की धारा 321 के तहत की गई वापसी पर उच्च न्यायालय इस अदालत द्वारा निर्धारित कानूनी परिधि के अंतर्गत सीआरपीसी की धारा 401 के तहत समीक्षा अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए परीक्षण कर सकता है।
न्यायमित्र ने कहा कि इसी तरह कर्नाटक सरकार ने 62, तमिलनाडु ने 4, तेलंगाना ने 14 और केरल ने 36 मामले बिना कारण बताए वापस ले लिए। हंसारिया ने कहा कि इस न्यायालय ने 10 अगस्त, 2021 को आदेश दिया था कि उच्च न्यायालय की अनुमति के बगैर सांसद/विधायक के विरूद्ध अभियोजन वापस नहीं लिया जाएगा।