उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार के 17 ओबीसी जातियों को अनुसूचित जाति की श्रेणी में शामिल किए जाने के फैसले को केंद्र सरकार द्वारा असंवैधानिक करार दिए जाने पर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने बुधवार को निशाना साधा और कहा कि सरकार इन 17 जातियों को मूर्ख क्यों बना रही है।
राजभर ने ट्वीट किया, ‘इन 17 जातियों को जाति प्रमाण-पत्र देकर सरकार इन्हें मूर्ख क्यों बना रही है। सरकार जो विभिन्न विभागों में भर्ती करने जा रही है, उसमें इन जातियों को एससी के कोटे में या पिछड़ी जाति में नौकरी मिलेगी, सरकार स्पष्ट करे, ताकि जो भर्ती होने जा रही है, उसमें भ्रम की स्थिति न बनी रहे।’
इन 17 जातियों को जातिप्रमाण पत्र देकर सरकार इन जातियों को मूर्ख क्यो बना रही है,सरकार जो विभिन्न विभागों में भर्ती करने जा रही है,उसमे इन जातियों को SC के कोटे में या पिछड़ी जाति में नौकरी मिलेगी,सरकार स्पष्ट करें ताकि जो भर्ती होने जा रही है उसमें भ्रम की स्थिति न बना रहे।
— Om Prakash Rajbhar (@oprajbhar) July 3, 2019
राजभर ने आगे लिखा, ‘उत्तर प्रदेश सरकार ने 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का जाति प्रमाण बनाने का जो निर्देश दिया है, क्या सरकार यह बताएगी कि इस जाति प्रमाण पत्र से किन-किन क्षेत्रों में इन 17 जातियों को लाभ मिलेगा, वह भी जब मामला उच्च न्यायालय में विचाराधीन है?’
दरअसल, केंद्र सरकार ने 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित सूची में शामिल करने के उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले को सरासर गलत करार दिया है। केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलौत ने कहा कि उप्र सरकार का फैसला संविधान के अनुरूप नहीं है, क्योंकि अनुसूचित, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े की सूची में बदलाव का अधिकार सिर्फ संसद को है।
गौरतलब है कि योगी सरकार ने 24 जून को जिलाधिकारियों और आयुक्तों को आदेश दिया था कि वे पिछड़ी जाति में शामिल 17 अति पिछड़ी जातियों -कश्यप, राजभर, धीवर, बिंद, कुम्हार, कहार, केवट, निषाद, भार, मल्लाह, प्रजापति, धीमर, बठाम, तुरहा, गोड़िया, मांझी और मछुआ को अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र जारी करें।
मंगलवार को राज्यसभा में यह मामला उठाते हुए बसपा के सतीश चंद्र मिश्रा ने कहा कि राज्य सरकार ने मनमाने तरीके से इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति की सूची में डाल दिया है, जबकि संविधान के तहत ऐसा करने का अधिकार सिर्फ संसद को है। राष्ट्रपति भी खुद ऐसा नहीं कर सकते।