भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की जरूरत पर जोर देते हुए कहा है कि वह खुद अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने और खुद अपनी प्रांसगिकता खत्म करने की दिशा में काम रहा है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने सोमवार को परिषद के सुधार को रोकने के प्रयासों का मजाक उड़ाते हुए कहा, ‘हम एक यथास्थिति का संरक्षक नहीं हो सकते हैं, जो मौजूद ही नहीं है।’ उन्होंने कहा कि परिषद बिना उद्देश्यों वाला संस्थान बनकर रह गया है और वह दुनिया के सामने आने वाली नई चुनौतियों का समाधान नहीं कर रहा है।
अकबरुद्दीन संगठन के काम पर महासचिव एंटोनियो गुटेरेस की एक रिपोर्ट पर बहस के दौरान बोल रहे थे, जिसमें परिषद में सुधारों का कोई जिक्र नहीं है। अकबरुद्दीन ने कहा, ‘आधुनिक दुनिया के साथ मेल न खाने वाले अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की मौजूदा संरचना को उन्नत करना नई वैश्विक चुनौतियों को पूरा करने के लिए जरूरी है।
सुरक्षा परिषद में सुधार करने की तुलना से अधिक साझा उद्देश्यों वाला कोई जरूरी काम नहीं है।’ संयुक्त राष्ट्र के कामकाज की आलोचना करते हुए अकबरुद्दीन ने कहा कि वैश्विक समुदाय भविष्य के जोखिम को देखने में नाकाम रहा है। उन्होंने कहा, ‘अगर आतंकवाद का मुकाबला करने की बात की जाए तो उदाहरण के लिए हमें सबसे पहले सीमाओं और वित्तीय प्रवाह की निगरानी के लिए एक विश्वसनीय और कुशल सेट स्थापित करने की जरूरत है। ऐसे प्रयास केवल तभी काम करेंगे, जब उचित मानकों को व्यापक रूप से अपनाया और उन्हें लागू करने में सहयोग तय किया जाए।’