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तालिबान की सफलता के लिए पड़ोसी देश पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराते हैं कुछ अफगान

जिहाद के लिए 20 वर्षीय वहाब को बचपन के दोस्तों द्वारा भर्ती किया गया था और उसे अफगानिस्तान के साथ पाकिस्तान की पहाड़ी सीमा पर स्थित पाराचिनार में एक आतंकवादी चौकी पर ले जाया गया था।

जब वहाब अफगानिस्तान में अपने घर से जिहाद के लिए गया तो उसने पड़ोसी देश पाकिस्तान में प्रशिक्षण प्राप्त किया।जिहाद के लिए 20 वर्षीय वहाब को बचपन के दोस्तों द्वारा भर्ती किया गया था और उसे अफगानिस्तान के साथ पाकिस्तान की पहाड़ी सीमा पर स्थित पाराचिनार में एक आतंकवादी चौकी पर ले जाया गया था। वहां, उसने अफगान तालिबान के साथ मिलकर लड़ने के लिए प्रशिक्षण प्राप्त किया। यह जानकारी उसके एक रिश्तेदार ने दी।
वहाब के उक्त रिश्तेदार ने यह जानकारी अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर दी क्योंकि उसे आतंकवादियों और सरकारी सुरक्षा एजेंटों से प्रतिशोध का भय था। ऐसे में जब तालिबान ने अफगानिस्तान के क्षेत्रों पर तेजी से नियंत्रण हासिल कर रहा है कई अफगान नागरिक विद्रोहियों की सफलता के लिए पाकिस्तान को दोषी ठहराते हैं और कई तरीकों से पाकिस्तानी क्षेत्र के उपयोग की ओर इशारा करते हैं। इस्लामाबाद पर इसके लिए दबाव बढ़ रहा है कि वह तालिबान को वार्ता की मेज पर लाये। पाकिस्तान ही शुरू में तालिबान को बातचीत की मेज पर लाया था।
विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान के लाभ को अक्सर बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है। हालांकि पाकिस्तान तालिबान के नेतृत्व को अपने क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति देता है और उसके घायल लड़ाकों का इलाज पाकिस्तानी अस्पतालों में होता है। तालिबान लड़ाको के बच्चे पाकिस्तानी में स्कूल में पढ़ते हैं और उनमें से कुछ के पास संपत्ति है। पाकिस्तान के कुछ नेताओं ने विद्रोहियों को ‘‘नया, सभ्य तालिबान’’ करार दिया है।
तालिबान के हमले से पश्चिमी अफगानिस्तान में हेरात के अपने क्षेत्र की रक्षा करने की कोशिश कर रहे एक अमेरिकी-सहयोगी इस्माईल खान ने स्थानीय मीडिया को बताया कि हाल ही में उनकी मातृभूमि में चल रहे युद्ध में पाकिस्तान की गलती है। उसने कहा, ‘‘मैं अफगानों से खुले तौर पर कह सकता हूं कि यह युद्ध तालिबान और अफगान सरकार के बीच नहीं है। यह अफगान राष्ट्र के खिलाफ पाकिस्तान की लड़ाई है। तालिबान उनके संसाधन हैं और एक सेवक के रूप में काम कर रहे हैं।’’
पाकिस्तान ने अफगानों को यह समझाने की असफल कोशिश की है कि वे अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार नहीं चाहते। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने हर सार्वजनिक और निजी मंच से कहा है कि पाकिस्तान अफगानिस्तान में शांति चाहता है, लड़ाई में उसका कोई पसंदीदा नहीं है और वह तालिबान द्वारा सैन्य सत्ता अधिग्रहण का कड़ा विरोध करता है।
बैठकों के बारे में जानकारी रखने वाले वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारियों के अनुसार, देश के शक्तिशाली सेना प्रमुख तालिबान के साथ बैठकों को दो बार छोड़कर बाहर निकल चुके हैं क्योंकि वह अफगानिस्तान में पूर्ण सत्ता में लौटने को लेकर तालिबान के दृढ़ संकल्प को देखकर उससे नाराज हैं। अधिकारियों ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर यह जानकारी दी क्योंकि उनके पास बैठकों पर चर्चा करने का कोई अधिकार नहीं था।
संयुक्त राष्ट्र ने पिछले हफ्ते अफगानिस्तान पर फिर से अपना पक्ष रखने के लिए एक विशेष बैठक को संबोधित करने के पाकिस्तान के अनुरोध को ठुकरा दिया था। मारे गए तालिबान लड़ाकों को सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में पाकिस्तान में दफनाए जाने की तस्वीरों को लेकर भी आलोचना की जाती है। पिछले साल, प्रधानमंत्री खान ने संसद में एक भाषण में ओसामा बिन लादेन को शहीद कहा था, जिसे आतंकवादियों के लिए एक संकेत के रूप में देखा गया था।
जब तालिबान लड़ाके सीमावर्ती शहर स्पिन बोल्डक पर हमले में अफगान सुरक्षा बलों से जूझ रहे थे, तब घायल विद्रोहियों का इलाज चमन में पाकिस्तानी अस्पतालों में किया गया था। तालिबान ने शहर को अपने नियंत्रण में ले लिया और वह अब भी उसके नियंत्रण में है।चमन के एक डॉक्टर ने बताया कि उसने कई घायल तालिबानियों का इलाज किया। उन्होंने कहा कि कई को आगे के इलाज के लिए पाकिस्तानी शहर क्वेटा के अस्पतालों में स्थानांतरित किया गया।
वहाब का एक चचेरा भाई सलमान कई साल पहले पाकिस्तान के एक मदरसे से पाकिस्तानी तालिबान में शामिल होने गया था। वहाब को विदेशी सैनिकों द्वारा मुसलमानों के खिलाफ अत्याचार दिखाने वाले प्रचार वीडियो से आतंकवादी संगठन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया गया था। उसके रिश्तेदार ने कहा कि वह इस साल की शुरुआत में अफगानिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्रों में अपने घर से भाग गया था, लेकिन उसके परिवार ने पाकिस्तान में उसका पता लगा लिया और समय रहते उसे घर ले आया।

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