काबुल : तालिबान का कहना है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी सैनिकों को अफगानिस्तान से वापस बुलाने के लिए गंभीर हैं। तालिबान ने शुक्रवार को एएफपी को यह जानकारी दी।
तालिबान के प्रवक्ता जैबीहुल्लाह मुजाहिद ने एएफपी को वाट्सएप्प के जरिए यह जानकारी दी। इससे एक दिन पहले अमेरिका ने कहा था कि तालिबान के सदस्यों के साथ बातचीत ‘सही दिशा में चल रही’ है।
अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाने की ट्रंप की प्रत्यक्ष इच्छा के बाद वार्ता पर काफी जोर है। पिछले सप्ताह कतर में लगातार छह दिन तक दोनों पक्षों के बीच बातचीत हुई।
मुजाहिद ने कहा, ‘‘ सैद्धांतिक रूपरेखा को लेकर एक सहमति बनी है, अगर यह लागू होता है, अगर अमेरिका इमानदारीपूर्ण तरीके से कदम उठाता है और सच्चाई इससे जुड़ा रहता है तो अफगानिस्तान से कब्जा समाप्त हो सकेगा।” मुजाहिद ने कहा, ‘‘ ऐसा प्रतीत होता है कि ट्रंप गंभीर हैं।”
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अमेरिका के विशेष दूत जलमय खलिलजाद ने एक ‘मसौदा रूपरेखा’ के बारे में बातचीत की। हालांकि उनका कहना था कि इसमें अभी मुख्य चनौतियां बनी हुई हैं।
अफगानिस्तान में 1996 में तालिबान का शासन हो गया था। देश में तालिबान ने अपनी परिभाषा के अनुसार कड़े शरिया कानून लगाए थे। इसके बाद 2001 में अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला कर दिया।
इसके बाद से अफगानिस्तान में तालिबानी आतंकवादी जगह-जगह हिंसा करने लगे। इनकी मांग है कि देश से विदेशी सैनिकों को हटाया जाए और देश में इस्लामिक कानून स्थापित किया जाए।
मुजाहिद ने स्वीकार किया कि तालिबान के 90 के दशक के शासन को कई तरह की आर्थिक, समाजिक और सुरक्षा संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ा। इसमें सबसे प्रमुख यह था कि पुरुषों को महिलाओं से कैसे अलग किया जाए। तालिबान के शासन में महिलाएं ज्यादातर घरों में बंद थी।
मुजाहिद ने कहा, ‘‘ तालिबान महिलाओं की शिक्षा का विरोध नहीं करती है। हम महिलाओं को शिक्षा और काम का सुरक्षित माहौल देने की कोशिश करेंगे। इस्लामिक शरिया कानून में जितनी अनुमति महिलाओं के लिए होगी, उसकी इजाजत दी जाएगी।”
हालांकि एएफपी से कई महिलाओं ने इसको लेकर चिंता जाहिर की है। उनका कहना है कि यह शांति समझौता कुछ चीजों की कीमत पर आएगा। मुजाहिद का कहना है कि अगले चरण की वार्ता दोहा में 25 फरवरी से शुरू होगी।