उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि पर्वतीय राज्यों में जंगल की आग, विशेषकर गर्मी के मौसम में, एक बहुत ही गंभीर समस्या है और इसकी मुख्य वजह इन इलाकों में बड़ी संख्या में देवदार के वृक्षों की मौजूदगी है।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बी आर गवई की अवकाशकालीन पीठ ने याचिकाकर्ता को जंगल की आग के मुद्दे पर उत्तराखंड उच्च न्यायालय के निर्देशों की प्रति दाखिल करने की अनुमति प्रदान करने के साथ ही अधिवक्ता ऋतुपर्ण उनियाल की याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी। पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘याचिकाकर्ता अतिरिक्त दस्तावेज रिकार्ड में लाने के लिये कुछ समय चाहता है। उन्हें ऐसा करने की अनुमति दी जाती है।
इसके बाद मामले को सूचीबद्ध किया जाये।’’ शीर्ष अदालत उत्तराखंड में वनों, वन्यजीवों और वन संपदा को जंगल की आग से बचाने के लिये तत्काल कदम उठाने के लिये अधिवक्ता ऋतुपर्ण उनियाल की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता का कहना है कि जंगल की आग की घटनायें साल दर साल बढ़ रही हैं और इससे पर्यावरण को बहुत ज्यादा नुकसान हो रहा है।
इससे पहले, मामले की सुनवाई शुरू होते ही पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को उच्च न्यायालय जाना चाहिए क्योंकि उसके पास इस मामले पर विचार के लिये बेहतर दृष्टिकोण होगा। हालांकि, उनियाल ने कहा कि उच्च न्यायालय ने इस विषय पर कई निर्देश दिये थे और उनकी प्रति पेश करने के लिये उन्होंने कुछ समय प्रदान करने का अनुरोध किया।
याचिका में केन्द्र, उत्तराखंड सरकार और राज्य में प्रधान मुख्य वन संरक्षक को आग की घटनायें शुरू होने से पहले और आग की रोकथाम के लिये नीति तैयार करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है।