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AGR मामले में टेलीकॉम कंपनियों को राहत, सुप्रीम कोर्ट ने बकाया चुकाने के लिए दिया 10 साल का वक्त

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को वोडाफोन आइडिया, भारती एयरटेल, टाटा टेलीसर्विसेज जैसी टेलीकॉम ऑपरेटर्स कंपनियों को अपने लंबित एजीआर बकाया का भुगतान करने के लिए 10 साल का समय दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को वोडाफोन आइडिया, भारती एयरटेल, टाटा टेलीसर्विसेज जैसी टेलीकॉम ऑपरेटर्स कंपनियों को अपने लंबित एजीआर बकाया का भुगतान करने के लिए 10 साल का समय दिया है। शीर्ष अदालत ने दूरसंचार कंपनियों को 31 मार्च, 2021 तक अपने एजीआर बकाया का 10% तक का भुगतान करने का भी निर्देश दिया है। 
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि भुगतान किस्तों पर डिफ़ॉल्ट ब्याज, जुर्माना और अदालत की अवमानना को आमंत्रित करेगा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने समय पर भूगतान नहीं करने पर कोर्ट की अवमानना की भी चेतावनी दी है। गौरतलब है कि जस्टिस मिश्रा कल यानी 2 सितंबर को ही रिटायर हो रहे हैं और उन्हें इस मामले में फैसला देना था। समायोजित सकल राजस्व की राशि करीब 1.6 लाख करोड़ रुपए है।
दूरसंचार ऑपरेटरों और भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने वित्तीय तनाव और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव का हवाला देते हुए बकाया चुकाने के लिए और समय मांगा था। टेलीकॉम कंपनियां 15 साल की समयावधि की मांग कर रही थीं जबकि सरकार ने उन्हें 20 साल देने का सुझाव दिया था।
मार्च में, दूरसंचार विभाग ने शीर्ष अदालत से अपील की थी कि  बकाया AGR के भुगतान के लिए 20 साल की दिया जाए। पिछले अक्टूबर में  सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दूरसंचार कंपनियों द्वारा भुगतान करने में असमर्थता जताई गयी थी। 
अक्टूबर में, सुप्रीम कोर्ट ने दूरसंचार ऑपरेटरों को स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क और लाइसेंस शुल्क से अधिक और गैर-राजस्व राजस्व पर कर का भुगतान करने के लिए कहा था। इस फैसले ने केंद्र की राजस्व की व्यापक परिभाषा को बरकरार रखा, जिसके आधार पर सरकार दूरसंचार ऑपरेटरों पर कर की गणना करती है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एयरटेल और वोडाफोन आइडिया को 82,000 करोड़ रुपये की संयुक्त देयता का सामना करना पड़ा।
अदालत, हालांकि, दूरसंचार कंपनियों को 20 साल देने के लिए कम इच्छुक थी। जवाब में, वोडाफोन आइडिया और एयरटेल ने 15 साल और टाटा टेलीसर्विसेज ने सात से 10 साल की मांग की। 25 अगस्त को, अदालत ने कहा कि अगर वह अपनी बकाया राशि का भुगतान करने को तैयार नहीं हैं तो दूरसंचार कंपनियों को स्पेक्ट्रम आवंटन रद्द कर सकती है।

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