द्रमुक ने निर्मला सीतारमण द्वारा पेश केंद्रीय बजट को आश्वासनों का पिटारा बताया और कहा कि इसमें रोजगार, अर्थव्यवस्था, कृषि क्षेत्र से जुड़े वादों को पूरा करने को कोई खाका नहीं है । वित्त वर्ष 2019..20 के आम बजट पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए द्रमुक सदस्य एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री ए राजा ने कहा, ‘‘ आश्वासनों को पूरा करने के लिये बजट में कोई खाका नहीं है।’’ उन्होंने कहा कि यह देश कृषि आधारित व्यवस्था वाला देश है लेकिन सरकार को लगता है कि कॉरपोरेट के माध्यम से ही धन सृजित हो सकता है ।
ऐसा इसलिये है क्योंकि पूरा जोर प्रत्यक्ष विदेश निवेश (एफडीआई) पर ही है । राजा ने कहा कि सरकार ने अगले पांच वर्षो में अर्थव्यवस्था को 3000 अरब डालर से बढ़ाकर 5000 अरब डालर का करने का लक्ष्य रखा है । इसके लिये एफडीआई पर ही निर्भर नजर आते हैं । उन्होंने जोर दिया कि बजट भाषण में कुल राजस्व और कुल खर्च का उल्लेख नहीं किया गया । बजट में सूखे के विषय का जिक्र नहीं है । किसानों को 6000 रूपये देने की बात कही जा रही है लेकिन कृषि की मजबूती के लिए खाका नहीं है ।
द्रमुक सदस्य ने कहा कि सरकार ने प्रति वर्ष दो करोड़ रोजगार देने का वादा किया था, कालाधन लाने का वादा किया था लेकिन यह पूरा नहीं हो सका । अर्थव्यवस्था के विकास की गति काफी धीमी है और बैंकों की गैर निष्पादित आस्तियां (एनपीए) बढ़ रही हैं। तृणमूल कांग्रेस के शिशिर अधिकारी ने कहा कि सरकार ने साल 2024 तक देश की अर्थव्यवस्था को 5000 अरब डालर की अर्थव्यवस्था बनाने की बात कही है । इसके लिये सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को 8 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ाना होगा । लेकिन इसके लिये कोई खाका पेश नहीं किया गया है ।
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उन्होंने कहा कि भारत युवाओं का देश है, युवाओं को रोजगार चाहिए लेकिन बेरोजगारी की दर 45 वर्षो में सर्वोच्च स्तर पर है । तृणमूल सदस्य ने कहा कि राजकोषीय घाटा चिंता का विषय है । इसके अलावा अनेक सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) के विनिवेश की बात कही जा रही है और हमारी पार्टी इसका विरोध करती है ।
वाईएसआर कांग्रेस के एम भरत ने कहा कि हमें उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत 5000 अरब डालर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य को हासिल कर लेगा । उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद थी कि आंध्रप्रदेश के लिये बजट में काफी कुछ होगा, लेकिन हमें निराशा हुई है। आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की बात को उत्तरोत्तर सरकारों ने नजरंदाज किया है ।