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तीन तलाक विधेयक मुस्लिम परिवारों को तोड़ने वाला कदम : गुलाम नबी आजाद

चर्चा में भाग लेते हुए जदयू के वशिष्ठ नारायण सिंह ने विधेयक का विरोध किया। उन्होंने कहा कि वह न तो विधेयक के समर्थन में बोलेंगे और न ही इसमें साथ देंगे।

राज्यसभा में मंगलवार को कांग्रेस सहित अधिकतर विपक्षी दलों के साथ साथ अन्नाद्रमुक, वाईएसआर कांग्रेस ने भी तीन तलाक संबंधी विधेयक का कड़ा विरोध करते हुए इसे प्रवर समिति में भेजे जाने की मांग की। विपक्षी दलों के सदस्यों ने इसका मकसद ‘‘मुस्लिम परिवारों को तोड़ना ’’ बताया। 
उच्च सदन में मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2019 पर चर्चा में भाग लेते हुए नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने सवाल उठाया कि जब तलाक देने वाले पति को तीन साल के लिए जेल भेज दिया जाएगा तो वह पत्नी एवं बच्चे का गुजारा भत्ता कैसे देगा? उन्होंने कहा, ‘‘यह घर के चिराग से घर को जलाने की कोशिश’’ की तरह है।
 
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उन्होंने कहा कि इस विधेयक का मकसद ‘‘मुस्लिम परिवारों को तोड़ना’’ है। उन्होंने कहा कि इस्लाम में शादी एक दिवानी समझौता है। उन्होंने सरकार से सवाल किया कि आप इसे संज्ञेय अपराध क्यों बना रहे हैं? उन्होंने इस विधेयक को प्रवर समिति में भेजने की मांग की। 
चर्चा में भाग लेते हुए जदयू के वशिष्ठ नारायण सिंह ने विधेयक का विरोध किया। उन्होंने कहा कि वह न तो विधेयक के समर्थन में बोलेंगे और न ही इसमें साथ देंगे। उन्होंने कहा कि हर पार्टी की अपनी विचारधारा होती है और उसे पूरी आजादी है कि वह उस पर आगे बढ़े। जदयू के सदस्यों ने विधेयक का विरोध करते हुए सदन से बहिर्गमन किया। 
तृणमूल कांग्रेस की डोला सेन ने तीन तलाक संबंधित विधेयक के प्रावधानों की चर्चा करते हुए कहा कि यदि तलाक देने वाले पति को जेल में डाल दिया गया तो वह जेल में रहने के दौरान अपनी पत्नी एवं बच्चों को गुजारा भत्ता कैसे दे पाएगा? सेन ने सरकार को सलाह दी कि इस विधेयक को प्रवर समिति में भेजा जाना चाहिए। 

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उन्होंने इस विधेयक से तीन तलाक को अपराध बनाने का प्रावधान हटाने की मांग भी की। समाजवादी पार्टी के जावेद अली खान ने इस विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि कहा कि कई पत्नियों को उनके पति छोड़ देते हैं। उन्होंने सरकार से जानना चाहा कि क्या वह ऐसे पतियों को दंड देने और ऐसी परित्यक्त महिलाओं को गुजारा भत्ता देने के लिए कोई कानून लाएगी? उन्होंने कहा कि मुस्लिम विवाह एक दिवानी करार है। 
उन्होंने कहा कि तलाक का मतलब इस करार को समाप्त करना है। उन्होंने कहा कि इस कानून के तहत तलाक का अपराधीकरण किया जा रहा है, जो उचित नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार राजनीतिक कारणों से यह विधेयक लायी है और ऐसा करना उचित नहीं है। अन्नाद्रमुक के ए नवनीत कृष्णन ने विधेयक का विरोध करते हुए इसे प्रवर समिति में भेजे जाने की मांग की। 
उन्होंने कहा कि ऐसा कानून बनाने की संसद के पास विधायी सक्षमता नहीं है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के कुछ प्रावधानों को पूर्व प्रभाव से लागू किया गया है जो संविधान की दृष्टि से उचित नहीं है। द्रमुक के टी के एस इलानगोवन ने विधेयक को प्रवर समिति में भेजने की मांग करते हुए कहा कि इसकी जगह कोई वैकल्पिक विधेयक लाने का सुझाव दिया। 
राकांपा के माजिद मेनन ने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट  ने इस बारे में कोई निर्णय दे दिया है तो वह अपने आप में एक कानून बन गया है। ऐसे में अलग कानून लाने का क्या औचित्य है? वाईएसआर कांग्रेस के विजयसाई रेड्डी ने भी विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि जब तीन तलाक को निरस्त मान लिया गया है तो फिर आप तीन साल की जेल की सजा का प्रावधान कैसे कर सकते हैं? उन्होंने कहा कि इस सजा के प्रावधान से दोनों पक्षों के बीच समझौते की संभावना समाप्त हो जाएगी। 

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